For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द के खूब समंदर देखे 
हमने बाहर नहीं अंदर देखे 

आह को वाह में बदल दें वो 
एक से एक धुरंधर देखे 

देवता के गुनाह देख लिए 
जब कथाओं में चंदर देखे 

लोग उंगली पे उठा लेते है 
कृष्ण देखे हैं ,पुरंदर देखे 

फंस ही जाते हैं अपनी चालों में 
जाल देखे हैं ,मछंदर देखे 
_____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 1:35am

यह शैली अनायास हो गयी द्विपदी की भी हो सकती है.  लेकिन है वस्तुतः ग़ज़ल की. और उस तथ्य पर हम संभवतः आपस में बात कर चुके हैं.

सादर

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 2:35am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल है .... मात्रा बता दें तो कुछ शेर की तक्तीअ में आसानी हो
सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 8, 2013 at 10:22pm

वाह वाह क्या कहने बेहतरीन प्रस्तुति क्या कहने घाव करे गंभीर वाली बात है बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

Comment by विजय मिश्र on October 8, 2013 at 3:29pm
खूब , बहुत खूब !! आपने साबित किया -" कलम में दम हो तो कम में भी बहुत दम भरा जा सकता है . आत्मीय आभार विश्वंभरजी .
Comment by Sushil.Joshi on October 8, 2013 at 6:23am

बहुत बढ़िया.... बधाई हो आपको आदरणीय शुक्ल जी...

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 7, 2013 at 5:39pm

बहुत खूब ! क्या बात है ! हार्दिक बधाई !

Comment by Meena Pathak on October 7, 2013 at 5:26pm

बहुत खूब .. बधाई आप को 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 7, 2013 at 11:53am

दर्द के खूब समंदर देखे 
हमने बाहर नहीं अंदर देखे

बहुत गहरी बात ....वाह महाशय :)

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 7, 2013 at 10:44am

गहरे भाव पगी छाप छोडती रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री विशम्भर शुक्ल जी |सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 7, 2013 at 7:43am

आदरणीय विश्वम्भर भाई , पूरी ग़ज़ल बेमिसाल कही है आपने !!! हर शेर लाजवाब हैं !!! बधाई !!!

दर्द के खूब समंदर देखे 
हमने बाहर नहीं अंदर देखे 
आह को वाह में बदल दें वो 
एक से एक धुरंधर देखे ---------------- दो शेरों के लिये अलग से दिली दाद कुबूल करें !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service