लो हँसी दूब
बादल जो छलके
बहुत खूब
*
नेह की बूँद
मन पांखुरी पर
गिरी अब,लो
*
मन विभोर
कर गए बदरा
जी सराबोर
*
मुंह चिढाया
मुस्कुराया भी वो
फिर बरसा
*
लिखी हमने
नेह की एक पाती
हवा ले उड़ी
*
जल ही जल
बरस गए मेह
वाह,सस्नेह
*
आई बौछार
बजे मन के तार
प्यार ही प्यार
*
बिन बरसे
ये बादल रहे ना
माना कहना
*
जल अमृत
विहँसे,उड़े खग
हर्षित जग
*
मन प्रसन्न
बही आखिरकार
रस की धार
____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
बहुत ही सुन्दर हाइकू हैं। वाह! मजा आ गया! मेरी बधाई स्वीकारें!
वाह वा
हाइकु विधा जब प्रकृति को बाँधती है तो जैसे चमत्कार ही हो जाता है ..
शानदार अभिव्यक्ति
mazedaar hayku
अतिसुन्दर और मनभावन प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें।
आ0 विश्वम्भर सर जी, हाईकू की छोटी-छोटी जल बिन्दु वर्षा की रिमझिम बनकर मन को सराबोर कर गई। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
हार्दिक धन्यवाद विजय मिश्र जी ,आपके स्नेह की वर्षा भी तो कुछ कम नहीं ,यह बरसात स्नेह से भीगी फुहारें यूँ ही भिगोती रहें मित्र !
बहुत आभार आपका cootee mukerji जी ,पानी तो खूब बरस रहा है ,क्या लखनऊ क्या दिल्ली और क्या उत्तराखंड ,बस लिख दिए हाइकू ,बहुत दिन से प्यासी थी धरती ,आपका स्नेह ,अपार यूँ ही मिलता रहे हर बार !
आपकी कवीता और लखनऊ की वर्षा ......दोनों की खूब जम रही है .विश्वम्भर जी.सादर / कुंती .
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