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यह बारिशों का मौसम, कितना हसीन है!
धरती गगन का संगम, कितना हसीन है!
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
बच्चों के हाथ में हैं, कागज़ की किश्तियाँ,
फिर भीगने का ये क्रम, कितना हसीन है!
विहगों की रागिनी है, कोयल की कूक भी,
उपवन का रूप अनुपम, कितना हसीन है!
झूलों पे पींग भरतीं, इठलातीं तरुणियाँ,
लय तान का समागम, कितना हसीन है!
मित्रों का साथ हो तो, आनंद दो गुना,
नगमें सुनाता आलम, कितना हसीन है!
हर मन का मैल मेटे, सुखदाई मानसून,
हर मन का नेक हमदम, कितना हसीन है!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय, आशुतोष जी, आपकी जिज्ञासा का समुचित समाधान इस लिंक पर हो जाएगा। यहीं से ही मैंने भी सीखने की शुरुआत की। यह सब सब्र श्रम, लगन और लगातार अभ्यास से ही संभव है। एक दो शब्दों में बताना संभव नहीं। सादर
http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...
आप इस समूह को ज्वाइन कर लें तो और बेहतर रहेगा।
सादर बधाई के साथ
मात्राएँ गिनना हम अब सीख रहे हैं ..पहली पंक्ति में का में एक मात्र इसलिए है क्या क्यूंकि का पर ज्याद स्ट्रेस नहीं पद रहा है या आर कोई बजह है ..हम चाहते हैं आप मात्राओं का आकलन अपने किन्ही दो शेरो के माध्यम से हमें समझाने का कसष्ट करें ..मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की मुझसे गलती कहाँ हो रही है
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
और इस शेर में
झूलों पे पींग भरतीं, इठलातीं तरुणियाँ,
लय तान का समागम, कितना हसीन है!
आदरणीय मित्रों-जितेंद्रजी, विजय जी, अमन जी,कुंती जी, वीनस जी,राम शिरोमणि जी,बृजेश जी, महिमा श्री जी, रचना को अपना हसीन स्नेह प्रदान करने के लिए आप सबका हार्दिक आभार। यूँ ही आप सबका स्नेह बरसता रहे।
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
बच्चों के हाथ में हैं, कागज़ की किश्तियाँ,
फिर भीगने का ये क्रम, कितना हसीन है!
फिर भीगने का ये क्रम, कितना !....वाह आदरणीया बहुत ही मनमोहक प्रस्तुति .. आपका हर एक शेर हसीन है! !!! बधाई स्वीकार करें
बहुत ही सुन्दर! हिन्दी गजल के प्रतिमानों की स्थापना में आपका योगदान अतुलनीय है। आपके मेरी बधाई इस रचना के लिए।
आदरणीया कल्पना जी दमदार शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई //
गीत के जैसी मधुर ग़ज़ल हो जाए तो आनंद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ...
और यहाँ तो विषय और रदीफ़ सब कुछ हसीन है ...
शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय केवल प्रसाद जी, 'मेल'शब्द तो टंकण की त्रुटि से हो गया है। ठीक कर देती हूँ, लेकिन दूसरे शेर में क्या गड़बड़ है, स्पष्ट बताइये। पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ0 रामानी मैम जी, सुन्दर गजल हुई है।
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
हर मन का मेल मेटे, सुखदाई मानसून,
हर मन का नेक हमदम, कितना हसीन है!..दोनों शे‘र फिर से देख लें। सादर,
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