स्नेह सुधा बरसाओ मेघा,
व्याकुल हुआ तरसता मन।
रिश्तों की जो बेलें सूखीं,
कर दो फिर से हरी भरी।
मन आँगन में पड़ी दरारें,
घन बरसो, हो जाय तरी।
सिंचित हो जीवन की धरती।
ले आओ ऐसा सावन।
दूर दिलों से बसी बस्तियाँ,
भाव शून्यता गहराई।
सरस सुमन निष्प्राण हो गए,
नागफनी ऐसी छाई।
बूँद-बूँद में हो बहार सी,
बरसाओ वो अपनापन।
उपजाऊ हो मन की माटी,
हर फुहार ऐसी लाओ।
सौंधी खुशबू उड़े प्रेम की,
मेघराज जल्दी आओ।
पुनः पल्लवित हो जीवन में,
शुष्क हुआ जो अंतरमन।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीय अशोक जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद...
सादर
आदरणीय सौरभ जी आपकी अनमोल टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार...
सादर
जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टि रचनाकार की अभिव्यक्तियों को सार्वकालिक बना देती है.
पारस्परिक सम्बन्धों में दुराव और वैयक्तिक एकाकीपन से उपजी छटपटाहट के सापेक्ष समाधान हेतु मेघ का आह्वान समीचीन लगा. आपकी इस रचना (नवगीत) के प्रति सादर भाव रखते हुए आपको बधाइयाँ दे रहा हूँ
सादर
पुनः पल्लवित हो जीवन में,
शुष्क हुआ जो अंतरमन।.............वाह! बहुत मनभावन.
आदरणीया कल्पना रमानी जी सदर, बारिश की बूंदों से लगी ये आस कितना कुछ चाहती है.बहुत सुन्दर रचना. सादर बधाई स्वीकारें.
बहुत सुन्दर नवगीत आ० कल्पना जी
हार्दिक बधाई
आदरणीय, राजेश कुमारी जी, कुंती जी, केवलप्रसाद जी, आप सबका हर्षित करती हुई टिप्पणियों के लिए हार्दिक धन्यवाद...
सादर
रमानी जी, आपकी रचना हमेशा जीवन के अनुभवों की संचीत पूंजी का स्रोत होता है. अति सुंदर
सादर
कुंती
आ0 रामानी मैम जी, सादर प्रणाम! अतिसुन्दर भाव भरे वर्षा गीत। स्फूर्ति एवं आनंददायनी। तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
उपजाऊ हो मन की माटी,
हर फुहार ऐसी लाओ।
सौंधी खुशबू उड़े प्रेम की,
मेघराज जल्दी आओ।
पुनः पल्लवित हो जीवन में,
शुष्क हुआ जो अंतरमन।
आदरणीया कल्पना रमानी जी बहुत सुन्दर गीत लिखा हर बंद शानदार है बहुत बहुत बधाई
राजेश जी, आपकी टिप्पणी उससे दो गुना पुलकित करती है। हार्दिक धन्यवाद आपका
सादर
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