वो हँसी गुल संवर रही होगी
चांदनी सी बिखर रही होगी
सारी दुनिया हो बेखबर चाहे
चातकों की नजर रही होगी
जब कमानी वदन किया होगा
थमी-थमी ये सहर रही होगी
रुख हवा ने उधर किया होगा
मलिका-ए-हुस्न वो जिधर होगी
नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे
आज की शाम वो किधर होगी
उसके दीदार हो गए जी भर
ये खुशी सोचो किस कदर होगी
“आशु” हर सिम्त सजा फूलों से
चुन रखी कोई तो डगर होगी
(मौलिक व अप्रकाशित)
डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१
Comment
आदरणीया मंजरी जी ...आपके प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद ..बैसे न जाने कैसे रदीफ़ काफिया में परिवर्तन जैसी त्रुटी मुझसे हो गयीए ..आदरनीय गणेश प्रसाद जी एवं आदरनीय केवल जी ने मेरी गलती की तरफ मेरा ध्यान केन्द्रित किया इसके लिए मैं उनका भी ह्रदय से आभारी हूँ ..मैंने ग़ज़ल में परिवर्त कर लिया है ..ओपन बुक ओंन लाइन की यही बात मुझे बेहद आकर्षित करती है की इसमें एक परिवार की तरह से सबकी मदद करते हुए साहित्य उन्नयन का उत्क्रिस्ट प्रयास किया जा रहा है यहाँ कुछ न कुछ सीखने को जरूर मिलता है ...अपने गलती के लिए खेद व्यक्त करने के साथ ही
वो हँसी गुल संवर रही होगी
चांदनी सी बिखर रही होगी
सारी दुनिया हो बेखबर चाहे
चातकों की नजर रही होगी
आदरणीय डॉक्टर आशुतोष जी रचना की मासूमियत भा गई .
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
आपके इस प्रयास पर मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!
आदरणीय केवल जी, आपने यथोचित प्रश्न किया है, एकं बार मतला से रदीफ़ , काफिया, बहर निर्धारित हो गए तो हो गए, उसके बाद ग़ज़ल के साथ छेड़खानी अमान्य है .
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी की रचना ग़ज़ल मानकों पर सफल नहीं है.
आ0 आशुतोष सर जी, क्षमा के साथ निवेदन करना है- क्या गजल में ’काफिया’ और ’रदीफ’ बदल सकती है? यूं तो गजल के भाव बहुत ही सुन्दर हैं। सादर,
नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे
आज की शाम वो किधर होगी
उसके दीदार हो गए जी भर
ये खुशी सोचो किस कदर होगी
वाह !
नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे
आज की शाम वो किधर होगी...sunder
अच्छी रचना पर बधाई स्वीकारे आदरणीय आशुतोष जी!
उसके दीदार हो गए जी भर
ये खुशी सोचो किस कदर होगी
//नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे
आज की शाम वो किधर होगी// .... वाह... वाह... वाह
बहुत ही खूबसूरत ख़याल हैं!
बधाई।
विजय निकोर
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