दास्ताँ इक तुम्हे सुनानी है
आज पीने को मय पुरानी है
मेरी आँखों में सूनापन सा है
सूनेपन की कोई कहानी है
राजा रानी हों जरूरी तो नहीं
इक कहानी तो बस कहानी है
आँखों आँखों से बात की जाए
आज तबियत जरा रूमानी है
बिखरी साँसें यहाँ फिजाओं में
गुमशुदा इनमे इक जवानी है
मेरी आँखों में झांककर देखो
इसमें पागल कोई दीवानी है
तेरी राहों में फूल जैसे बिछे
तू कदम रख दे मेहरवानी है
तू नहीं है तो कोई रंज नहीं
पास मेरे तेरी निशानी है
जाम ठुकरा के न जाओ “आशु”
कतरे-कतरे में जिंदगानी है
(मौलिक व अप्रकाशित)
डॉ आशुतोष मिश्र , आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१
Comment
आँखों आँखों से बात की जाए
आज तबियत जरा रूमानी है
बिखरी साँसें यहाँ फिजाओं में
गुमशुदा इनमे इक जवानी है
क्या कहने जनाब वाह वा
ढेरों दाद क़ुबूल फरमाएं ....
बहुत सुंदर......बधाई
vijayshree jee hardik dhnywaad
.....कहानी तो बस कहानी है .......
..........कतरे कतरे में जिंदगानी है ........
सुंदर प्रस्तुति ........बधाई
हार्दिक धन्यवाद कुंती जी
दिल से निकली बहुत सुंदर दास्तान / सादर / कुंती
dhnywaad vijay jee
"...... कतरे-कतरे में जिंदगानी है " - बधाई इस सुंदर भाव केलिए .
गीतिका जी हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया ..सादर
आँखों आँखों से बात की जाए
आज तबियत जरा रूमानी है
सुन्दर रचना पर बधाई!
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