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’’वेगवती छन्द’’

इसमें विषम चरण में तीन सगण-(112) तथा एक गुरू-(2) तथा
सम चरण में तीन भगण-(211) तथा दो गुरू-(22) होते हैं।

.1.
कण कारक ज्यों मन कृष्णा। कारण कृष्ण कमाल सुतृष्णा।
जन.लोक अतीव नसाना। घोर. विरोध सजाय मसाना।।
जगती तल-अम्बर-वर्षा। बाढ़-हुताशन ज्यों यम हर्षा।
अब तो मन सोच सुकर्मा। कार्य सुहाय अघोर.विकर्मा।।


.2.
मन राम सुनाम विचारो। मानव से नित प्यार सॅवारो।
वन-बाग-सुभाष सुधारो। कर्म-सुधर्म  सदा मन धारो।।
रख हाथ मशाल जला री। सोच मना कित काम पधारी।
कर  याद  सुदर्शन धारी। दाह  करे  तम संकट  भारी।।


के0पी0 सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2013 at 7:56pm

आ0 सावित्री राठौर जी,  आपके स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2013 at 7:55pm

आ0 गीतिका वेदिका जी,  आपके स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2013 at 7:54pm

आ0 अरून शर्मा भाई जी,  आपके स्नेह  के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2013 at 7:09pm

सुन्दर रचना ......बधाई हो,केवलप्रसाद जी !

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 4:11pm

वेगवती छंद ….बढ़िया प्रयास … शुभकामनायें आदरणीय केवल जी!

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 11:49am

आदरणीय केवल भाई जी नित नए नए छंदों पर आपको प्रयास करते हुए देख अत्यंत प्रसन्नता होती है, ’’वेगवती छन्द’’ से परिचय करवाने हेतु एवं छंद पर प्रयास करने हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 22, 2013 at 9:51pm

आ0 माथुर सर जी,  आपके स्नेह  के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 22, 2013 at 9:50pm

आ0 कुन्ती मैम जी,  आपके स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 22, 2013 at 9:49pm

आ0 बृजेश भाई जी,  आपके स्नेह के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 22, 2013 at 9:47pm

आ0 श्याम नारायण सर जी,  आपके स्नेह एवं आशीष के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

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