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व्यथा!

तुम

मन के किबाड़े

खोलना मत 

खोलना मत 

सौ तरह के 

व्यंग होगे 

धूल धूसर 

संग होंगे 

भाव कोई गैर 

अपनी 

भावना में 

घोलना मत 

घोलना मत 

व्यथा!

खुद से कहना 

खुद ही सहना 

तेरी

अंतर यातना 

पर किसी से 

बोलना मत 

बोलना मत 

व्यथा!  

गीतिका 'वेदिका'

मौलिक एवम अप्रकाशित  

Views: 1085

Comment

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Comment by वेदिका on June 26, 2013 at 2:12am

आदरणीया मीना जी! आपका धन्यवाद बधाई हेतु।

आदरणीय नेमा  भैया! आपकी उपस्थिति रचना पर  हुयी।

आभार!    

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 25, 2013 at 6:16pm

खुद से कहना 

खुद ही सहना 

तेरी

अंतर यातना 

पर किसी से 

बोलना मत 

बोलना मत 

व्यथा!

या दिल की सुनो दुनिया वालों 

या मुझको अभी चुप रहने दो 

बहुत सुन्दर भाव युक्त रचना , दिल में घर कर गयी , सादर बधाई 

Comment by Meena Pathak on June 25, 2013 at 5:06pm

खुद से कहना 

खुद ही सहना 

तेरी

अंतर यातना 

पर किसी से 

बोलना मत 

बोलना मत 

व्यथा!  ..................... बहुत सुन्दर गीतिका जी .. बधाई आप को 

Comment by Ramkumar Nema on June 25, 2013 at 4:31pm

आदरणीया..गीतिका जी, ओबीओ का सक्रिय सदस्य की उपाधि मिलने पर बधाई आपकी रचना व्यथा की पंक्तियां ." खुद से कहना खुद ही सहना तेरी अंतर यातना."  अति सुंदर व दिल को छूने वाली हैं.. 

Comment by वेदिका on June 25, 2013 at 1:34am

आदरणीय अरुण जी! आपका आभार आपने रचना कर्म सराह के मुझे मनोबल प्रदान किया

Comment by वेदिका on June 25, 2013 at 1:34am

आपका आभार आदरणीय ब्रिजेश जी! आपने रचना पर अपने विचार व्यक्त करके मेरा उत्साह वर्धन किया 

  

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 10:23pm

आदरणीय वेदिका जी मन की व्यथा को सुन्दरता से व्यक्त किया है आपने मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by बृजेश नीरज on June 24, 2013 at 9:53pm

बहुत सुन्दर प्रयास आपका! मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 4:03pm

आप का कहना सही है आदरणीय अमन जी! वरना अंदर ही अंदर व्यथा मनोमष्तिष्क को घोंट ही देती है 

व्यथा को मन के किबाड़े खोल ही  देना चाहिए 

 

Comment by aman kumar on June 24, 2013 at 3:50pm

व्यथा!

तुम

मन के किबाड़े

खोलना मत 

खोलना मत 

कविता के खाचे मे तो अति उत्तम कविता है आपकी |

पर वास्तविकता के धरातल पर व्यथा! तो कम ही जब होती है जब खुले मे आये , 

आभार !

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