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पत्थर

वह रोज उसे ठोकर मारता |
आते जाते |
मगर वह टस से मस नहीं हुआ |
एक दिन जोर की ठोकर मारते ही उसके पांव लहू लुहान हो गए |
अब वह उस पत्थर की पूजा करता है |
हाँथ जोड़कर उसी तरह रोज आते जाते |

पानी

बाप ने कहा "बेटा पानी अब सर से ऊपर हो रहा है "
"आप वसीयत कर दे "
"तुम्हारी बहन को भी तो हिस्सा देना होगा "
"शादी में जितना दिया था उसका हिसाब पहले होगा "
"और बेटा तुम्हें पढाने लिखाने तुम्हें अपना बेटा बना २५ वर्षों तक उम्मीद पालने का हिसाब ?"
"पापा अब पानी सर के ऊपर हो रहा है |"
"बेटा एक गिलास पानी देना "बीमार माँ ने भीतर के कमरे से आवाज़ दी |

आग

'सुनो आग लगी ,धुंआ उठ रहा है |'
'कहाँ लगी ?'
'लगता है पड़ोस के शर्मा जी के यहाँ '
'सो जाओ तुम भी सपना देखती रहती हो |

ज़मीन

अपनी ही ज़मीं पे खड़ा मै,
तलाश रहा था,
ज़मी का एक टुकड़ा,
ज़मी तो नसीब हुआ नहीं,
टुकड़ों से भी महरूम हो गया मै|

(लघु कथा "ज़मीन " साथी वरिष्ठ प्रसारक श्री किशोर कुमार की भेंट )

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on December 15, 2010 at 9:45am

शुक्रिया !! बहुत दिनों बाद ?

Comment by vikas rana janumanu 'fikr' on December 15, 2010 at 7:29am

bahut ache bhayee

 

pahli waali to kamaal hai

 

Comment by Abhinav Arun on December 13, 2010 at 1:38pm
एक प्रयास किया था लघुकथा के रूप में , आपने पसंद कर हौसला बढ़ाया शुक्रिया !!
Comment by DEEP ZIRVI on December 12, 2010 at 7:47pm

O OH. LAGHU KVY MYI

Comment by Abhinav Arun on December 8, 2010 at 3:48pm
थैंक्स भास्कर जी |लघुकथा आपने पसंद कि आभार |
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:22pm
bahut khoob

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