दूर देश में एक बड़ा ही खुशहाल गाँव था। वहाँ के जमींदार साहब बड़े अच्छे आदमी थे। उनकी हवेली में पूजा पाठ, भजन कीर्तन हमेशा चलता रहता था। गाँव वाले मानते थे कि इस पूजा पाठ के प्रभाव से ही देवताओं की कृपादृष्टि उनपर हमेशा बनी रहती है। गाँव के बड़े बुजुर्ग तो ये भी कहते थे कि जमींदार साहब के पूजापाठ की वजह से ही गाँव पर भी देवताओं की कृपा हमेशा बनी रहती है। इसीलिए पिछले पचास वर्षों से इस गाँव में अकाल नहीं पड़ा।
पर भविष्य किसने देखा था। कुछ वर्षों बाद वहाँ भीषण अकाल पड़ा। गाँव वाले त्राहि त्राहि कर उठे। लेकिन जमींदार साहब की माली हालत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। जब भूखो मरने की नौबत आ गई तो गाँव वाले जमींदार साहब के पास गये।
जमींदार साहब ने उनकी बातें बड़े ध्यान से सुनीं और बोले - आज रात मैं देवी काली की पूजा करके उनसे इस अकाल का कारण पूछूँगा और जल्द से जल्द वर्षा करने की प्रार्थना करूँगा।
अगले दिन सुबह जब गाँव वाले जमींदार की हवेली पर पहुँचे तो जमींदार साहब एक सुनहरे पंखो वाली मुर्गी थामे हवेली के बरामदे में अपनी शानदार कुर्सी पर बैठे थे।
जमींदार साहब ने गाँव वालों से कहा – कल रात देवी काली मेरे सपने में आईं थीं। उन्होंने कहा कि गाँव में पाप बहुत बढ़ गये हैं इसलिए ये अकाल पड़ा है। गाँव वाले श्रद्धा भाव से माँ काली की पूजा रोज करें तो तीन चार साल में उनके पाप कम होने से बरसात होने लगेगी। तब तक लोग भूख से न मरें इसलिए मैं ये सोने का अंडा देने वाली मुर्गी तुम्हें देती हूँ। इसे गाँव वालों को दे देना। इसके अंडे बेचकर वो अपने लिये भोजन और पूजा की सामग्री इत्यादि खरीद लिया करें।
इतना कहकर जमींदार साहब ने वह मुर्गी गाँव वालों के हवाले कर दी। गाँव वाले बड़े खुश हुये। उन्होंने जमींदार की जय जयकार की और सोने का अंडा बेचकर किसी तरह पूरे गाँव की रोजी रोटी का जुगाड़ करने लगे।
एक दिन गाँव के कुछ क्रांतिकारी युवकों की एक गुप्त स्थान पर बैठक हुई।
उनमें से एक बोला - हमें मुर्गी का पेट चीरकर सारे अंडे एक साथ निकाल लेना चाहिए और उससे कोई बड़ा व्यवसाय शुरू करना चाहिए।
फौरन दूसरा बोला – अरे ओ अक्ल के अंधे! सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी भूल गये क्या? इस तरह तो मुर्गी मर जायेगी और जो एक अंडा हमें रोज मिल रहा है वो भी नहीं मिलेगा।
तीसरा बोला - ऐसा करते हैं कि एक दिन उस मुर्गी को अपना अंडा सेने देते हैं हो सकता है कि उसमें से सोने का अंडा देने वाला चूजा निकल आये।
चौथा बोला - पागल हुए हो क्या? अगर ऐसा होता तो वो जमींदार हमें कभी ये मुर्गी न देता। क्योंकि इस तरह तो हम सब कुछ ही दिनों में जमींदार की तरह अमीर हो जायेंगे। अगर ऐसा हुआ तो जमींदार के खेतों में काम कौन करेगा।
पाँचवा बोला - अगर जमींदार ने हमें ये मुर्गी दी है तो पक्का उसके पास और भी मुर्गियाँ होंगी वरना वो अपनी कमाई का इकलौता जरिया इस अकाल में हमें कभी न देता। चलो हम ये मालूम करें कि जमींदार के पास ये मुर्गियाँ आती कहाँ से हैं।
सारे नौजवान चुपके चुपके जमींदार की हवेली की निगरानी करने लगे। एक दिन हवेली में एक बड़ा सा ट्रक आया। ट्रक जब हवेली से बाहर निकला तो कुछ नौजवानों ने उसका पीछा किया। एक ढाबे पर ट्रक वाला खाना खाने रुका तो उनमें से एक नौजवान ट्रक वाले के पास गया और बातों बातों में ये पूछा कि वो अपने ट्रक में क्या लेकर जा रहा है। ट्रक वाले ने कहा कि एक बड़ी सी मशीन है जिसे मरम्मत के लिए शहर ले जाया जा रहा है। उस नौजवान ने वापस आकर बाकियों को ये बात बताई। यह सुनकर सभी को शक होने लगा कि हो न हो इसी मशीन से सोने का अंडा देने वाली मुर्गियाँ बनती हैं। आखिरकार अपने शक को यकीन में बदलने के लिए उन्होंने फैसला किया कि उनमें से एक हवेली में घुसकर सच का पता लगायेगा।
कुछ दिनों बाद मशीन ठीक होकर वापस आ गई। अगली रात उनमें से एक नौजवान चोरी से दीवार फाँदकर हवेली में दाखिल हुआ। किसी तरह छुपते छुपाते वह हवेली के तहखाने में पहुँचा जहाँ वह भीमकाय मशीन रखी हुई थी। वह नौजवान वहीं एक कोने में पड़े अनाज के बोरों के पीछे छिप कर बैठ गया। थोड़ी देर बाद जमींदार वहाँ आया। उसके हाथ में एक मुर्गी थी। जमींदार ने वो मुर्गी मशीन में डाली और मशीन को चालू करने वाला बटन दबा दिया। दस मिनट बाद मशीन बंद हुई तो वो मुर्गी बाहर निकली। उसके पंख सुनहले हो चुके थे यानि वह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन चुकी थी। ये खबर अपने बाकी साथियों को देने के लिए वह नौजवान बचते बचाते हवेली से बाहर निकला और तेजी से गाँव की तरफ दौड़ पड़ा। लेकिन हवेली के चौकीदार ने उसे भागते हुये देख लिया।
अगले दिन न उस नौजवान का कुछ अता पता था न उस गाँव के एक भी आदमी का। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अकाल के कारण गाँव वाले गाँव छोड़कर चले गये हैं। थाने के हर पुलिसवाले के घर भी अब एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
कथा में तथ्य गायब है. न देशकाल के अनुसार कथा बैठ रही है.शीर्षक में भी दोष है...कथा का अंत भी भ्रमीत कर देने वाला है. धर्मेंद्र जी आप इस कथा को पुनः पढ़िये.
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