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मेरे पिया गए परदेश रे 
ना मनवा लागे रे 
सावन आया 
ददुरबा बोले 
ददुरबा बोले ददुरबा बोले 
बादल गरजे तेज रे 
ना मनवा लागे रे 
चिठ्ठी आयी ना 
पाती आयी 
ना आया कोई सन्देश रे 
ना मनवा लागे रे
सोलह श्रृंगार 
ना मन को भाये 
मन को भाये न मन को भाये
भाये ना ये देश रे 
ना मनवा लागे रे 
जब से पिया परदेश गए हैं
बातें करना भूल गए हैं 
भूल गए हाँ भूल गए हैं 
भूले हाँ भूले सारा प्रेम रे
ना मनवा लागे रे 
कोई तो जाए पिया को बुलाये 
संदेशवा मेरा पिया को दे आये 
पिया को दे आये पिया को दे आये 
अब,कटते नहीं दिन रैन रे 
ना मनवा लागे रे
मेरे पिया गए परदेश रे 
ना मनवा लागे रे

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by coontee mukerji on July 2, 2013 at 4:01pm

बहुत सुंदर विरह गीत .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 2, 2013 at 3:52pm
आदरणीय..देवेन्द्र भाई, बहुत सुंदर लोकगीत और बारिष का मौसम, वाह क्या कहने! "मेरेपिया गए परदेश रे ना मनवा लागे रे" सच..ना मनवा लागे रे......! हार्दिक बधाई स्वीकार करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 2:34pm

आपके लोक गीत को पढ़कर   बचपन में सुना गाँव में एक गीत की पंक्तियाँ याद आई ---मन्ने आवे हिचकी ,खूब सतावे हिचकी 

परदेस गए बालम की याद दिलावे हिचकी ---कुछ ऐसे ही मिलते जुलते भाव आपके गीत में हैं बहुत अच्छा ,बधाई आपको 

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