For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने देखा है ज़िन्दगी को पास से 

मैंने सुना है  उन आंसुओं की  हर एक अवाज  को 
जो चुप चाप मन में घोर विषाद लिए निकल रहे हैं 
मैंने देखा है एक रोटी के लिए बिलखते मासूमों को,
जिन्होंने ज़िन्दगी का प्रथम चरण भी नहीं देखा 
जिन्हें मा कहना भी ढंग से नहीं आता,
सच बहुत दुःख होता है इनको देखकर,
क्यों ऐसा होता है ?
 
क्या इसीलिए भगवान् ने इन्हें पृथ्वी पर भेजा है ?
कोई जवाब दे सकता है, इन आंसुओं का 
क्या कोई इन् बच्चो को क्रीडा सिखा सकता है ?
अगर है हिम्मत तो, आगे बढ़ो
और इन मासूमों को भी,अपने हिस्से का सुख दो 
अपनों को तो हंसाते सब को देखा है,पर कभी 
गैरों को भी अपना कह के देखो    
मौलिक व अप्रकाशित 
 
  

Views: 655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by RAHUL ROY on July 2, 2013 at 12:00pm

बहुत सुंदर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 1, 2013 at 7:45pm

गैरों को भी अपना कह कर देखो - वाह बहुत खूब 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 1, 2013 at 4:00pm

भाई आपकी भावनाएं आपके उदार ह्रदय को दर्शा रही हैं, किन्तु यह सभी को भली भांति ज्ञात है कि बदलाव तभी संभव है जब प्रयास करने वाले हाँथ मजबूत हों. समय ऐसा आ गया है कि सकारात्मक सोंच रखने वाले लोग कम और नकारात्मक सोंच के लोग अधिक हैं, यदि कुछ लोग बदलने का प्रयास भी करते हैं तो उनकी निजी समस्याएं उनके आड़े आ जाती हैं और न चाहते हुए भी रास्ता बदलना पड़ता है. खैर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारे.

Comment by रविकर on July 1, 2013 at 10:30am

बड़ी चुनौती बंधुवर, सभी चाहते प्यार ।

किन्तु कहीं देना पड़े, झट करते तकरार ॥

बहुत बढ़िया है आदरणीय-

आभार-

Comment by vijay nikore on July 1, 2013 at 2:04am

भावाभिव्यक्ति अच्छी है, आदरणीय। बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by शुभांगना सिद्धि on June 30, 2013 at 8:31pm
मैंने देखा है एक रोटी के लिए बिलखते मासूमों को,
जिन्होंने ज़िन्दगी का प्रथम चरण भी नहीं देखा 
पीड़ा सचमुच पीड़ादायी है 
Comment by वेदिका on June 29, 2013 at 11:45pm

सुंदर भाव!! आपने बहुत वैचारिक भाव समेटे है। बाकि कुछ मै कहना चाहती हूँ  

कविता पर गद्य को न हावी होने दे।   

मन किया आपकी "पीड़ा" पढ़ के उसे कुछ अपने कातरता में ढ़ालने का  का,, कैसी लगी अपने मत से अवगत कराइए

 

मैंने देखा जब 

जिन्दगी को पास से 

बहुत पास से 

मैंने सुनी 

उन आँखों की सिसकियाँ 

जो  हिलकती है 

चुपचाप ही

मैंने देखा है 

रोटी के लिए

रोते बिलखते

भूखे मासूम को 

जिसने नही देखा

जिन्दगी का  

पहला पायेदान भी 

वह मासूम 

जिसे अभी माँ 

कहना भी नही आया 

सच! बहुत दुखा  दिल

आह! क्यों हुआ ऐसा 

अरे! क्यों हुआ ऐसा   

आपको इस सृजन पर बहुत बहुत बधाई! 

Comment by Dr Babban Jee on June 29, 2013 at 8:50pm

Aadarniya Vijay Sir, main aapki views and comments se sahmat hun. man ki pida ko byakat karne ke liye sundar shabdo ki jarurat nahin padti,,,,abhibyakti ko byakat karne ka koi niyam kanoon nahin hota hai 

 

Comment by विजय मिश्र on June 29, 2013 at 6:07pm
विकसित भारत के आंतरिक स्वरुप का यथार्थ चित्रण है आपकी रचना और अंत में एक न्योता जो आपके सजल हृदय को और सर्वतोकृष्ट मानवीय आचरण को प्रस्तुत करता है.जो सजग समाजसेवी हैं ,यथासामर्थ्य निश्चित रूप से इस विकराल दारिद्र्य का समन करने को उद्धत रहते हैं और करते भी हैं .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2013 at 4:55pm
आदरणीय ..देवेन्द्र जी, .सुंदर रचना अभिव्यक्ति 'हार्दिक शुभकामनाऐं व स्नेह....'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
15 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service