मेरे पिया गए परदेश रे
ना मनवा लागे रे
सावन आया
ददुरबा बोले
ददुरबा बोले ददुरबा बोले
बादल गरजे तेज रे
ना मनवा लागे रे
चिठ्ठी आयी ना
पाती आयी
ना आया कोई सन्देश रे
ना मनवा लागे रे
सोलह श्रृंगार
ना मन को भाये
मन को भाये न मन को भाये
भाये ना ये देश रे
ना मनवा लागे रे
जब से पिया परदेश गए हैं
बातें करना भूल गए हैं
भूल गए हाँ भूल गए हैं
भूले हाँ भूले सारा प्रेम रे
ना मनवा लागे रे
कोई तो जाए पिया को बुलाये
संदेशवा मेरा पिया को दे आये
पिया को दे आये पिया को दे आये
अब,कटते नहीं दिन रैन रे
ना मनवा लागे रे
मेरे पिया गए परदेश रे
ना मनवा लागे रे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर लोकगीत! इस प्रयास पर मेरी बधाई स्वीकारें।
लोकगीत में यदि खड़ी बोली का प्रयोग न किया जाता तो शायद इसकी सुंदरता अधिक होती।
सादर!
आदरणीय देवेन्द्र जी, सावन माह में पिया की बाट जोहती नायिका का बिरह वेदना लोकगीत के माध्यम से बड़े ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है, इस गीत में अभी और संभावना है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर .
सुन्दर लोक गीत है | मेरे विचार से इसे कुछ इस प्रकार से लिखा जाय तो और अच्छी लय बैठगी -
मेरे पिया गए परदेश रे
मेरा मनवा नहीं लागे रे
------------- बहार हाल सुन्दर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई श्री देवेन्द्र पाण्डेय जी
लोक गीत विधा पर बहुत खूबसूरत प्रयास हुआ है..लोकगीतों को आम बातें ही खास बनाती हैं...और वही खासियत इस प्रस्तुति में भरपूर समाहित है..बहुत बहुत बधाई . बस बन्दों की तुकांतता को यदि थोडा सा और साधा जाता तो मज़ा आ जाता! आप एक बार देखिएगा शायद सहमत हों !!
शुभकामनाएं
देवेन्द्र जी
सुंदर
सुन्दर प्रस्तुति देवेन्द्र भाई जी! //प्रयासरत रहें आप और भी अच्छा लिख सकते है //हार्दिक बधाई
प्रेरित करता लोकगीत-
बधाई आदरणीय देवेन्द्र जी -
सावन दादुर बादल चिट्ठी, पिया धरा ने पानी |
धरा पिया की खातिर क्या क्या, मैं प्यासी दीवानी-
बाढ़ रही व्याकुलता पल पल, उधर बाढ़ का खतरा-
हे देवेन्दर वर्षा रोको, करिए मत मनमानी ||
बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई.......................................
वाह! वाह! क्या गीत लिखा आपने देवेन्द्र भाई जी!
बातें करना भूल गए हैं
भूल गए हाँ भूल गए हैं
भूले हाँ भूले सारा प्रेम रे
ना मनवा लागे रे ,,, बहुत खूब ,, कहीं पिया को सौतनिया तो न मिल गयी हो, क्या जाने राम :))
मधुर बधाई!!
Sadarr Dhanyawad
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