नाद- लय की ये नदी, फिर सूखती क्यों है?
निःशब्द बहती चेतना, फिर डूबती क्यों है?
है अधूरी जिंदगी ,सारे सवालों के जवाब
वो पहाड़े याद कर, फिर भूलती क्यों है ?
जब पवन जल अग्नि, आकाश धरती से
है जन्म लेती मूरतें, फिर टूटती क्यों है ?
जान कर भी जो कभी, लौट कर आया नहीं
ये बावरी तृष्णा उसे, फिर ढूँढती क्यों है ?
खूब रोता दिल अकेले, में समझने के लिये
समझे जिसे थे जिंदगी ,फिर रूठती क्यों है ?
है समंदर आसमाँ में, और जमीं बेचैन है
चीख़ वो बेआवाज़ सी, फिर गूँजती क्यों है ?
-ललित मोहन पन्त
4. 07.2013
00.27
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है समंदर आसमाँ में, और जमीं बेचौन है
चीख वो बेआवाज सी, फिर गूँजती क्यों है ?
आदरणीय पन्त सर , अच्छी कविता की बधाई !
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