जो चिरागों की लौ में पिघलता है
वो हसरतों को रौ में बदलता है .
तेरे वजूद पे भरोसा है जिसको
आस्माँ से गिर कर भी सँभलता है.
ख्व़ाब जो नींदों के पार रहता है
वो जागती आँख में मचलता है .
चाँद है ,तारे हैं, तन्हाइयाँ भी हैं
ये दिल किसे ढूँढने निकलता है.
हर कदम गुजरा इम्तहाँ से मेरा
हर मोड़ पर रास्ता बदलता है .
हासिल ए हयात अब भी बाकी है
सिर्फ याद से दिल नहीं बहलता है
.
-ललित मोहन पन्त
02.21 सुबह
13.07.2013
"मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
भाई ललित मोहन पन्त जी, ग़ज़ल पर आपका प्रयास अच्छा लगा.
आपने इस मंच पर रचना पोस्ट करने से सम्बन्धित नियम आवश्य देख लिए होंगे. आप अपनी ग़ज़लआदि प्रविष्टियों के साथ उनकी बह्र का विन्यास या नहीं तो उनके मिसरों का वज़्न अवश्य दिया करें. इससे आपको ही लाभ होगा.
आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल में अन्य ऐब भी हैं. लेकिन क़ाफ़िया और रद्दीफ़ बेहतर निभाया गया है.
शुभेच्छाएँ
arun kumar nigamji NeerajMishra ji Shyam Narain Verma ji आपकी हौसला अफजाई का शुक्रिया …
आदरणीय ललित मोहन पन्त जी, शानदार गज़ल के लिये बधाइयाँ............
हर कदम गुजरा इम्तहाँ से मेरा,
हर मोड़ पर रास्ता बदलता है .|
हासिल ए हयात अब भी बाकी है ,
सिर्फ याद से दिल नहीं बहलता है |
kya bolun aapki ye lines kisi chamatkaar se kam nhi lagti
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
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