है बहुत मजबूर वो जमाने से भागता होगा
नींद की ख्वाहिश में रात भर जागता होगा।
रौशनी के चंद कतरे रखे थे अँधेरों से छुपा
क्या पता था कोई दरारों से झाँकता होगा।
जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम
ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा।
आज समझा अहले दौराँ की तिज़ारत देखकर
शैतान भी इन्साँ से अब पनाहें माँगता होगा।
घटा घनघोर घिरती है गरजती है बरसती है
कहर की बिजलियों से कौन जाने राब्ता होगा।
रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही
कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।
-ललित मोहन पन्त
2. 27 रात
8. 8 .2013
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
//यूँ भी व्यस्त चिकित्सकीय जीवन में देर रात ही वक़्त मिल पाता है …मैं जानता हूँ यह बहाना क्षम्य नहीं है //
आप ही की दशा हममें से अधिकांश सदस्यों की है.
आपने सही कहा, आदरणीय, विधान के प्रति अन्यमनस्कता क्षम्य नहीं है. किन्तु, यह आपकी असीम उदारता ही है कि आप अपनी व्यस्तता को ’बहाना’ कह रहे हैं. यह आपकी लगन को ही दर्शाता है.
सादर
आदरणीय Saurabh Pandeyजी आपकी सलाह और प्रतिक्रिया का मैं ह्रदय से आभारी हूँ … प्रयास करता हूँ … विधान की सीमाओं में सृजन जब किंचित समझने लगा हूँ आसान नहीं लगता …यूँ भी व्यस्त चिकित्सकीय जीवन में देर रात ही वक़्त मिल पाता है …मैं जानता हूँ यह बहाना क्षम्य नहीं है …. आप जैसे मार्गदर्शक मुझे दिशा देते रहेंगे तो एक दिन मेरे सृजन को विधान भी मिल जायेगा … आभार …. इसी तरह स्नेह से उपकृत करते रहेंगे ….
इसी तरह स्नेह बनाये रखेंगे
आपकी रचना की भाव-दशा सार्थक है. प्रयास करें कि इस गेयता को विधान मिल जाये. यही प्रयास आपके अंतर के कवि को भी संतुष्ट करेगा.
सादर
अच्छी ग़ज़ल है, एकाध शेर को छोड़कर बाकी के मजमून अच्छे हैं,
जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम
ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा।
रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही
कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।
मतला भी खूबसूरत है!
जीवन की सच्चाई...,,, शब्द बहुत सुन्दर पिरोया आपने....
रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही
कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।
ये पंक्तियाँ निशब्द करती गयीं
वाह वाह सुंदर रचना बधाई स्वीकारे आदरणीय पंत जी ।
आदरणीय पन्त जी सुंदर रचना केलिए बहुत बहुत बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online