For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा ….…

August 8, 2013 at 2:33am

है बहुत मजबूर वो जमाने से भागता होगा 

नींद की ख्वाहिश में रात भर जागता होगा। 

 

रौशनी के चंद कतरे रखे थे अँधेरों से छुपा

क्या पता था कोई दरारों से झाँकता होगा। 

 

जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम

ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा। 

 

आज समझा अहले दौराँ की तिज़ारत देखकर 

शैतान भी इन्साँ से अब पनाहें माँगता होगा।

 

घटा घनघोर घिरती है गरजती है बरसती है 

कहर की बिजलियों से कौन जाने राब्ता होगा।

 

रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही 

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।  

 

-ललित मोहन पन्त 

2. 27 रात 

8. 8 .2013    

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 852

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2013 at 8:43am

//यूँ भी व्यस्त चिकित्सकीय  जीवन में देर रात ही वक़्त मिल पाता  है   …मैं  जानता हूँ यह बहाना क्षम्य नहीं है  //

आप ही की दशा हममें से अधिकांश सदस्यों की है.

आपने सही कहा, आदरणीय, विधान के प्रति अन्यमनस्कता क्षम्य नहीं है. किन्तु, यह आपकी असीम उदारता ही है कि आप अपनी व्यस्तता को ’बहाना’ कह रहे हैं. यह आपकी लगन को ही दर्शाता है.

सादर

Comment by dr lalit mohan pant on August 14, 2013 at 2:45am

आदरणीय Saurabh Pandeyजी आपकी सलाह और प्रतिक्रिया का मैं ह्रदय से आभारी हूँ  … प्रयास करता हूँ  … विधान की सीमाओं में सृजन जब किंचित समझने लगा हूँ आसान नहीं लगता  …यूँ भी व्यस्त चिकित्सकीय  जीवन में देर रात ही वक़्त मिल पाता  है   …मैं  जानता हूँ यह बहाना क्षम्य नहीं है  ….  आप जैसे मार्गदर्शक मुझे दिशा देते रहेंगे तो एक दिन मेरे सृजन को विधान भी मिल जायेगा  … आभार   …. इसी तरह स्नेह से उपकृत करते रहेंगे   …. 

इसी तरह स्नेह बनाये रखेंगे 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2013 at 11:58pm

आपकी रचना की भाव-दशा सार्थक है.  प्रयास करें कि इस गेयता को विधान मिल जाये. यही प्रयास आपके अंतर के कवि को भी संतुष्ट करेगा.

सादर

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 10:46am
रौशनी के चंद कतरे रखे थे अँधेरों से छुपा

क्या पता था कोई दरारों से झाँकता होगा।
बहुत ही सुन्दर बहुत ही
और बहुत ही गहरा ......

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2013 at 12:40pm
सुन्दर ग़ज़ल , वाह क्या बात है !!
Comment by राज़ नवादवी on August 10, 2013 at 12:39pm

अच्छी ग़ज़ल है, एकाध शेर को छोड़कर बाकी के मजमून अच्छे हैं, 

जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम

ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा। 

रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही 

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।  

मतला भी खूबसूरत है! 

Comment by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 4:27pm

जीवन की सच्चाई...,,, शब्द बहुत सुन्दर पिरोया आपने....

रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही 

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।  

  ये पंक्तियाँ निशब्द करती गयीं

Comment by विजय मिश्र on August 9, 2013 at 2:27pm
"आज समझा अहले दौराँ की तिज़ारत देखकर
शैतान भी इन्साँ से अब पनाहें माँगता होगा। " - बेशक एक तल्ख और मुद्दे पर तवज्जो की मिन्नत करती खूबसूरत गजल .लिखने का मजा तभी है जब मौजूँ जिन्दा हो . मुबारक पंतजी ,
Comment by annapurna bajpai on August 8, 2013 at 11:43pm

वाह वाह सुंदर रचना बधाई स्वीकारे आदरणीय पंत जी ।

Comment by shubhra sharma on August 8, 2013 at 10:25pm

आदरणीय पन्त जी सुंदर रचना केलिए   बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service