For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr lalit mohan pant's Blog (14)

ग़ज़ल -

रदीफ़- रही

काफ़िया -चलती , ढलती

अर्कान -२१२२,२१२२,२१२२,२१२

दायरों में ही सिमट कर जिंदगी ढलती रही

तुम फलक थे मैं जमीं औ कश्मकश चलती रही।

मायने थे रौशनी के रात भर उनके लिये

लौ दिये की थरथराती ताक में जलती रही।

दे रहा दाता मुझे खुशियाँ हमेशा बेशुमार

फिर कमी किस बात की जाने हमें खलती रही।

ज़िद ज़माने को दिखाने की रही थी बेवजह

जानि - पहिचानी मुसीबत कोख में पलती रही।

हौसला रखकर फ़तह का जंग हम…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on September 3, 2014 at 1:30am — 9 Comments

आओ ! जश्न मनायें …

कभी कभी

जब/ वाणी ,कलम और अनुभूतियाँ

यूँ छिटक जाते हैं

जैसे पहाड़ी बाँध से छूटी

उत्श्रिङ्खल लहरें

बहा ले जाती हैं /अचानक

खुशियाँ /सपने /और जिंदगियाँ …

जब /बदहवास रिश्ते

बहा नहीं पाते

अपनी आँखों और मन से

पीड़ा /स्मृतियाँ

और वो

जो ढह जाता है

ताश के महल की तरह

जब एक हूक उठती है

सीने में /और

भर देती है

अनंत आसमान का

सारा खालीपन

कभी सारा समन्दर

और उसका खारापन

जब जुगलबंदी…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on June 18, 2014 at 1:00am — 12 Comments

ग़ज़ल …. है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये

 रदीफ़ -के लिये 

काफ़िया -शुभकामनाओं ,संभावनाओं , याचनाओं 

अर्कान -2122 ,2122 ,2122 ,212 



है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये 

आँधियों की धूल में संभावनाओं के लिये . 



नींद क्यों आती नहीं ये ख्वाब हैं पसरे हुये 

हो गई बंजर जमीनें भावनाओं के लिये .



है बड़ा मुश्किल समझना जिंदगी की धार को 

माँगते अधिकार हैं सब वर्जनाओं…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on April 18, 2014 at 1:29am — 21 Comments

चलो यूँ ही समझा लें मन को …

मैं गिड़गिड़ाता रहा हूँ

रात दिन

तुम सबके सामने

जितने भी सम्बन्ध हो

कल आज और कल के

इस उम्मीद के साथ /कि

तुम थोड़ा पिघलोगे

भले ही अनिच्छा से

मेरा मान रखोगे

यह भ्रम /जीवन भर

साथ चलता रहा है

इसीलिये सब सहा है

यह सुनते ही तुम

मेरे विरोध में

खड़े हो जाओगे

और शायद फिर

मुझे गिड़गिड़ाता पाओगे

मैं अपना वक्तव्य बदलता हूँ

और इसे सार्वभौम /करता हूँ

फिर तुम्हारी और अपनी

ओर से कहता हूँ

मैं

मुझे…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on March 9, 2014 at 10:23pm — 14 Comments

जीभ से जो पेट तक है आग का दरिया ...(ग़ज़ल)

ग़ज़ल

२१२२ ,२१२२ ,२१२२ ,२



बेबसी की इंतिहा जब आह सुनती है 

आँसुओं से बैठ कर फिर वक़्त बुनती है.



मरहले दर मरहले बढ़ती रही वो धुँध  

जिंदगी क्यों, ये न जाने राह चुनती है. 



जीभ से जो पेट तक है आग का दरिया

फलसफों को भूख जिसमें रोज़ धुनती है. 



वो थका है कब हमारा इम्तिहाँ ले कर

रेत है जो भाड़ की हर वक़्त…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on November 29, 2013 at 1:30am — 10 Comments

क्यों, जीवन पर्यन्त मरीचिकायें आखेट करती है जीवन का ???

रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण तथा ओ बी ओ नियमों के अनुपालन के क्रम मे प्रबंधन स्तर से हटा दी गयी है, लेखक से अनुरोध है कि भविष्य में पूर्व प्रकाशित रचनाएँ ओ बी ओ पर पोस्ट न करें | (08.12.2013 / 22:35)

एडमिन
2013120807

Added by dr lalit mohan pant on November 21, 2013 at 12:00am — 10 Comments

फिर बारिशें होने लगती हैं......

फिर बारिशें होने लगती हैं......



कभी कभी

एक दावानल सा भड़क जाता है

मन के

हरे भरे /महकते

चहचहाते /किलोल करते

गर्जनाओं और वर्जनाओं के / जंगल में

डर

चीखों और चीत्कारों के साथ

हावी हो जाता है....

बेचैनी / घबराहट / घुटन / यंत्रणा

जैसे शब्द

किसी क्षण की चरम स्थितियों…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on November 14, 2013 at 1:30am — 11 Comments

ग़ज़ल - खोल शिखा फिर आन करें हम

मात्रा भार - 222 ,222 ,22





खोल शिखा फिर आन करें हम  

आज गरल का पान करें हम। 

ज्वालाओं के धनुष बना कर 

लपटों का संधान करें हम।  

 

अंगारों सा धधक रहा उस 

यौवन पर अभिमान करें हम।  

अँधियारा  जब छा जाये  तो  

खुद को ही दिनमान करें हम। 

समिधाओं से राख उड़ी है 

आहुति का आह्वान करें हम।

अपना कौन पराया कितना  

अब उनकी पहिचान करें हम।  

कर कौन रहा कल…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on October 30, 2013 at 12:00am — 16 Comments

वक़्त बदला, हैं बदले ख़यालात से ...

ग़ज़ल -

 

२१२  २१२  २१२  २१२ 

 

वक़्त बदला, हैं बदले ख़यालात से 

रौंदता ही रहा हमको लम्हात से  . 

 

क्यों मयस्सर नहीं जिंदगी में सुकूँ 

जूझता ही रहा मैं तो हालात से   . 

 

माँगता था दुआ में तिरी रहमतें

उलझनें सौंप दी तूने इफरात से .

 

जुर्रतें वक़्त की कम हुईं हैं कहाँ 

खेलती ही रहीं मेरे जज़्बात से.

तू बरस कर कहीं भूल जाये न फिर 

भीगता ही रहा पहली बरसात से. 

 

बात…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on October 16, 2013 at 11:00am — 16 Comments

दहकता सूरज भी /अंतिम छोर नहीं है.... ब्रह्माण्ड का ....

एक आसमान को छूता

पहाड़ सा / दरक जाता है

मेरे भीतर कहीं ..

घाटियों में भारी भरकम चट्टानें

पलक झपकते

मेरे संपूर्ण अस्तित्व को

कुचल कर

गोफन से छूटे / पत्थर की तरह

गूँज जाती हैं.

संज्ञाहीन / संवेदनाहीन

मेरे कंठ को चीर कर

निकलती मेरी चीखें

मेरे खुद के कान / सुन नहीं पाते

मैं देखता हूँ

मेरे भीतर खौलता हुआ लावा

मेरे खून को / जमा देता है

जब तुम न्याय के सिंहासन पर बैठ कर

सच की गर्दन मरोड़कर

देखते देखते निगल…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on October 10, 2013 at 11:00am — 16 Comments

दर्द को क्यों आज मेरी याद आई है ....

दर्द को क्यों आज मेरी याद आई है

हो रही मद्धम सफ़ों की रोशनाई है।



मुद्दत हुई जो तड़प हम भूल बैठे थे

वो ग़ज़ल फिरआज दिल ने गुनगुनाई है ?



आजमाता ही रहा मौला मुझे हर वक़्त

खूब किस्मत है गज़ब की आशनाई है।



माना जर्रा भी नहीं हम कायनात के

तेरे दर तक हर सड़क हमने बनाई है।



मेरे सूने से मकाँ में मेहमान बन के आ

बियाबाँ में बहारों की बज़्म सजाई है ।



दरिया के किनारों सा चलता रहा सफ़र

इस ओर ख्वाहिशें हैं उस ओर खुदाई है।…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on August 20, 2013 at 1:00pm — 15 Comments

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा ….…

August 8, 2013 at 2:33am

है बहुत मजबूर वो जमाने से भागता होगा 

नींद की ख्वाहिश में रात भर जागता होगा। 

 

रौशनी के चंद कतरे रखे थे अँधेरों से छुपा

क्या पता था कोई दरारों से झाँकता होगा। 

 

जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम

ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा। 

 

आज समझा अहले दौराँ की तिज़ारत देखकर 

शैतान भी इन्साँ से अब पनाहें माँगता होगा।

 

घटा घनघोर घिरती है गरजती है बरसती…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on August 8, 2013 at 2:30am — 16 Comments

जो चिरागों की लौ में पिघलता है ….

जो चिरागों की लौ में पिघलता है

वो हसरतों को रौ में बदलता है .

तेरे वजूद पे भरोसा है जिसको

आस्माँ से गिर कर भी सँभलता है.

ख्व़ाब जो नींदों के पार रहता है

वो जागती आँख में मचलता है .

चाँद है ,तारे हैं, तन्हाइयाँ भी हैं

ये दिल किसे ढूँढने निकलता है.

हर कदम गुजरा इम्तहाँ से मेरा

हर मोड़ पर रास्ता बदलता है .

हासिल ए हयात अब भी बाकी है

सिर्फ याद से दिल नहीं बहलता है

.

-ललित…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on July 13, 2013 at 2:30am — 6 Comments

नाद- लय की ये नदी फिर सूखती क्यों है ?

नाद- लय की ये नदी, फिर सूखती क्यों है?

निःशब्द बहती चेतना, फिर डूबती क्यों है?



है अधूरी जिंदगी ,सारे सवालों के जवाब 

वो पहाड़े याद कर, फिर भूलती क्यों है ?



जब पवन जल अग्नि, आकाश धरती से 

है जन्म लेती मूरतें, फिर टूटती क्यों है ?



जान कर भी जो कभी, लौट कर आया नहीं

ये बावरी तृष्णा उसे, फिर ढूँढती क्यों है ?



खूब रोता दिल…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on July 4, 2013 at 1:00am — 11 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
13 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service