मैं गिड़गिड़ाता रहा हूँ
रात दिन
तुम सबके सामने
जितने भी सम्बन्ध हो
कल आज और कल के
इस उम्मीद के साथ /कि
तुम थोड़ा पिघलोगे
भले ही अनिच्छा से
मेरा मान रखोगे
यह भ्रम /जीवन भर
साथ चलता रहा है
इसीलिये सब सहा है
यह सुनते ही तुम
मेरे विरोध में
खड़े हो जाओगे
और शायद फिर
मुझे गिड़गिड़ाता पाओगे
मैं अपना वक्तव्य बदलता हूँ
और इसे सार्वभौम /करता हूँ
फिर तुम्हारी और अपनी
ओर से कहता हूँ
मैं
मुझे लगता है अनुभव हूँ
एक उम्र का
संभवतः हो सकता हूँ
दिशा सूचक /भले या बुरे का
माना कि सब कुछ आपेक्षिक है
हर व्यक्ति के लिये
माना कि
मेरा सच /तुम्हारा नहीं
मेरा गंतव्य तुम्हारा मंतव्य नहीं
तुम उगते सूर्य हो /ज्ञान हो
प्रतिस्पर्धा हो /तर्क हो /अनूठे हो
इमोशंस /सेंटीमेंट्स /पेट्रिओटिज्म
इन निरर्थक शब्दों का ढोना
तुम्हें गवारा नहीं
इन सबका रोना
मर्यादा /विनय/सामाजिकता /शिष्टाचार
कहाँ है अब नये समाज का आधार ?
कोई नहीं होता ख़ास
सबके सब बिंदास …
संबंधों के बीच
गिड़गिड़ाना
परिस्थितियों का
हृदय शूल सा पिड़ाना
क्या जीवन की निरंतरता के
पड़ाव होते होंगे ?
जब सारा जग हँसता है
तब कुछ तो रोते होंगे …
चलो यूँ ही समझा लें मन को …
-ललित मोहन पन्त
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
dhanywaad geet ji aapke protsahan ke liye ...
अंतर में उठे अति गहन विश्लेषण को बहुत सहजता से समझाती हुई रचना, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय ललित जी
Omprakash Kshatriy,कल्पना रामानी ,Meena Pathak ji aap sabke protsahan ke liye hriday se aabhaar ....
चलो यूँ ही समझा लें मन को …
बहुत सुन्दर रचना ... बधाई
मन में उठते हुए भावों की गहन और सार्थक अभिव्यक्ति के लिए आपको हार्दिक बधाई
सरल सहज भाषा में सुन्दर कथ्य
Dr.Prachi Singh ji mujhe achchha laga ki meri baat aap tak pahunch paai ...aabhar aur dhanywaad .
rajesh kumari जी धन्यवाद आपकी सराहना के लिये …
मर्यादा /विनय/सामाजिकता /शिष्टाचार
कहाँ है अब नये समाज का आधार ?
कोई नहीं होता ख़ास
सबके सब बिंदास …
संबंधों के बीच
गिड़गिड़ाना
परिस्थितियों का
हृदय शूल सा पिड़ाना
क्या जीवन की निरंतरता के
पड़ाव होते होंगे ?
जब सारा जग हँसता है
तब कुछ तो रोते होंगे …
चलो यूँ ही समझा लें मन को …मन के भीतर उठते अंतर्द्वंद से निकले भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई आपको डॉ० ललित पन्त जी
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