For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आओ ! जश्न मनायें …

कभी कभी
जब/ वाणी ,कलम और अनुभूतियाँ
यूँ छिटक जाते हैं
जैसे पहाड़ी बाँध से छूटी
उत्श्रिङ्खल लहरें
बहा ले जाती हैं /अचानक
खुशियाँ /सपने /और जिंदगियाँ …

जब /बदहवास रिश्ते
बहा नहीं पाते
अपनी आँखों और मन से
पीड़ा /स्मृतियाँ
और वो
जो ढह जाता है
ताश के महल की तरह

जब एक हूक उठती है
सीने में /और
भर देती है
अनंत आसमान का
सारा खालीपन
कभी सारा समन्दर
और उसका खारापन

जब जुगलबंदी
साँस और धड़कन की
मन के चौखट पर
सिर पीटने लगती है

जब सहचर आत्मा के
छोड़ जाते हैं साथ
और टूटते हैं भरम
सैलाबों में ढहते मकानों की तरह

जब देवालय /आस्थाओं के मठ
लील जाते हैं
बेहिसाब आशाओं के उत्सव
और बुझ जाते हैं
हजारों बावली श्रद्धा के दीप

जब निर्भय प्रेत
रौंदते हैं मासूमियत
और सहमे हुये से हम
ताकते रहते हैं आसमान

मैं जानता हूँ
तब भी और अब भी
"वो "
रोज जन्म लेता है
तेरे मेरे भीतर
हम गिरा देते हैं उसे
हर बार एक अवांछित
भ्रूण की तरह …

फिर भी करते रहते हैं /प्रतीक्षा
"वो" जन्म लेगा एक दिन
आओ जश्न मनायें
डरे हुये लोगों में
बचे हुए विश्वास का ….

- डॉ.ललित मोहन पन्त
17 .06. 2014
12. 53 रात्रि

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by dr lalit mohan pant on July 9, 2014 at 1:21am

 आ . JAWAHAR LAL SINGH ,Meena Pathak , Dr.Prachi Singh , rajesh kumari , बृजेश नीरज , Saurabh Pandey   सभी विद्वत जन का आभार ... रोज निगाहें ढूँढती थी कि आज कोई प्रतिक्रिया अवश्य पढने को मिलेगी  … जानता हूँ सब्र का फल मीठा होता है  … सौरभ जी की शुरुआत पढ़ कर कुछ देर सांस रुक गई  … अबके तो ५ तारिख होने तक किसी और को पढ़ाने के लिए किस तरह अपने आप को रोक पाया मैं ही जानता हूँ    …     टीम प्रबंधन के चार सदस्यों की प्रतिक्रया एक साथ पढ़कर हर्षित हुआ  … धन्यवाद  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2014 at 11:54pm

आदरणीय ललित जी, खेद है इतने विलम्ब से आपकी इस सार्थक और संप्रेष्य़ रचना पर आ पा रहा हूँ.

हृदय से बधाई.

Comment by बृजेश नीरज on July 4, 2014 at 9:53am

बहुत अच्छी रचना! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 10:51am

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ---आशा पर हावी  निराशा ...कितु हर बार फिर नयी आशा का जन्म और हम बहे चले जाते हैं इस चक्र में यही तो जिन्दगी है ....शानदार प्रस्तुति ,बहुत बहुत बधाई आ० ललित मोहन पन्त जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 26, 2014 at 2:59pm

आदरणीय डॉ० ललित मोहन पन्त जी 

सही कहा...विषमतम परिस्थितियों में मन में प्रज्वल्लित आस्था विश्वास का दीप जैसे बुझ सा जाता है.... शायद यथार्थ स्वीकार नहीं कर पाता इंसान और बेबसी के कारण कई कई अज्ञान की परतों में ढँक सी जाती है आस्था विश्वास की देवाग्नि 

"वो "
रोज जन्म लेता है 
तेरे मेरे भीतर 
हम गिरा देते हैं उसे 
हर बार एक अवांछित 
भ्रूण की तरह …

फिर भी करते रहते हैं /प्रतीक्षा 
"वो" जन्म लेगा एक दिन 
आओ जश्न मनायें
डरे हुये लोगों में 
बचे हुए विश्वास का …...........बहुत सुन्दर.. बीज रूप में ये बचा विशवास मन की तहों में रहता ही है कहीं ना कहीं 

इस संवेदनशील प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Meena Pathak on June 21, 2014 at 10:21pm

आओ जश्न मनायें
डरे हुये लोगों में 
बचे हुए विश्वास का …...बहुत खूब //// बधाई | सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 21, 2014 at 1:31pm

गहरी सीख देती रचना! सादर!

Comment by dr lalit mohan pant on June 21, 2014 at 1:54am

MAHIMA SHREE ji dhanywaad protsahan ke liye  ...

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2014 at 8:01pm

आओ जश्न मनायें
डरे हुये लोगों में
बचे हुए विश्वास का.... बहुत बढ़िया ... बधाई आपको

Comment by dr lalit mohan pant on June 19, 2014 at 11:25am

आ.  coontee mukerji जी  जितेन्द्र 'गीत' जी आपकी प्रतिक्रिया और श्लाघा का आभार  … 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service