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बहर : २१२ २१२

--------

जो सरल हो गये

वो सफल हो गये

 

जिंदगी द्यूत थी

हम रमल हो गये

 

टालते टालते

वो अटल हो गये

 

देख कमजोर को

सब सबल हो गये

 

भैंस गुस्से में थी

हम अकल हो गये

 

जो गिरे कीच में

वो कमल हो गये

 

अपने दिल से हमीं

बेदखल हो गये

 

देखकर आइना

वो बगल हो गये
---------------

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 5, 2013 at 9:06pm
""भैंस गुस्से में थी

हम अकलहो गये"" वाह! आदरणीय..धर्मेन्द्र जी, क्या गजब का ताना मारा...वाह! दाद कुबूल कीजीऐ
Comment by coontee mukerji on July 5, 2013 at 8:10pm

भैंस गुस्से में थी

हम अकल हो गये..........क्या व्यंग्य है...फिर भी भैंस हो भैंस जुगाली करने से बाज़ थोड़े ही आएँगे.

जो गिरे कीच में

वो कमल हो गये..........यही  तो विडम्बना है.

Comment by ram shiromani pathak on July 5, 2013 at 7:12pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय//हार्दिक बधाई आपको ///बहुत ही सुन्दर //सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 5, 2013 at 6:58pm

धन्यवाद rajesh kumari जी, आपसे सहमत हूँ

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 5, 2013 at 6:58pm

शुक्रिया Laxman Prasad Ladiwala जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 5, 2013 at 6:58pm

धन्यवाद  Kewal Prasad जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 5, 2013 at 6:57pm

योगराज जी अकल को १२ में बाँधा है। सही शब्द अक्ल (२१) है। पर अवधी में अकल इतना ज्यादा बोला जाता है कि ध्यान में यही उच्चारण रह गया था। गलती की तरफ इशारा करने के लिए धन्यवाद।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 5, 2013 at 6:56pm

धन्यवाद सानी करतारपुरी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 5, 2013 at 6:56pm

शुक्रिया ajay sharma जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2013 at 5:47pm

बहुत बढ़िया इससे छोटी बहर शायद ही हो !! मजा आ गया पढ़ के आदरणीय धर्मेन्द्र जी ,हाँ पांचवे शेर में मुझे भी संशय जैसा की आदरणीय योगराज जी ने इंगित किया आपने अकल का वजन १ २  लिया है जब कि शब्द अक्ल --२ १ होना चाहिए ,फिलहाल दाद कबूल करें 

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