बहर : २१२ २१२
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जो सरल हो गये
वो सफल हो गये
जिंदगी द्यूत थी
हम रमल हो गये
टालते टालते
वो अटल हो गये
देख कमजोर को
सब सबल हो गये
भैंस गुस्से में थी
हम अकल हो गये
जो गिरे कीच में
वो कमल हो गये
अपने दिल से हमीं
बेदखल हो गये
देखकर आइना
वो बगल हो गये
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(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Comment
भैंस गुस्से में थी
हम अकल हो गये..........क्या व्यंग्य है...फिर भी भैंस हो भैंस जुगाली करने से बाज़ थोड़े ही आएँगे.
जो गिरे कीच में
वो कमल हो गये..........यही तो विडम्बना है.
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय//हार्दिक बधाई आपको ///बहुत ही सुन्दर //सादर
धन्यवाद rajesh kumari जी, आपसे सहमत हूँ
शुक्रिया Laxman Prasad Ladiwala जी
धन्यवाद Kewal Prasad जी
योगराज जी अकल को १२ में बाँधा है। सही शब्द अक्ल (२१) है। पर अवधी में अकल इतना ज्यादा बोला जाता है कि ध्यान में यही उच्चारण रह गया था। गलती की तरफ इशारा करने के लिए धन्यवाद।
धन्यवाद सानी करतारपुरी जी
शुक्रिया ajay sharma जी
बहुत बढ़िया इससे छोटी बहर शायद ही हो !! मजा आ गया पढ़ के आदरणीय धर्मेन्द्र जी ,हाँ पांचवे शेर में मुझे भी संशय जैसा की आदरणीय योगराज जी ने इंगित किया आपने अकल का वजन १ २ लिया है जब कि शब्द अक्ल --२ १ होना चाहिए ,फिलहाल दाद कबूल करें
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