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बता दो क्या कर लोगे

बता दो क्या कर लोगे

सूरज के ही आगे पीछे रहती है बस  धूप,

बता दो क्या कर लोगे 

उनका पेट भरेगा, तेरी भांड में जाए भूख ,

बता दो क्या कर लोगे 

तेरे ही काँधे पर चढ़कर छोड़ेंगे बन्दूक,

बता दो क्या कर लोगे 

बेटा उनका आगे होगा, तुम्ही जाओगे छूट, 

बता दो क्या कर लोगे 

काला होगा धन उनका जब तेरा पैसा लूट,

बता दो क्या कर लोगे 

कुर्सी तेरी वो बैठेंगे, तुम बस देना घूस,

बता दो क्या कर लोगे

 

मौलिक और अप्रकाशित  

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Comment by वेदिका on July 7, 2013 at 6:03pm

आपका आभार आदरणीय ललित जी! 

थैंक्स, आपने बता दिया! आज से भूगोल की क्लास ज्वाइन करने वाली हूँ :))))))))))  

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 5:54pm

Jitendra Pastariya जी 

 आपका बहुत बहुत आभार 
 सादर 
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 5:52pm
अब समझ मैं आया कि आपको भूगोल  में कम मार्क्स  क्यों आते थे।
दिन-रात की वजह धरती का अपनी कक्षा में घूमना भर है। धरती नहीं घूमेगी तो आधी पृथ्वी पर हमेशा रात और आधी धरती पर सदा सदा के लिए दिन रहेगा।
 सादर   
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 7, 2013 at 8:52am
"तेरेही काँधेपरचढ़कर छोड़ेंगेबन्दूक,

बता दो क्या करलोगे".....आदरणीय डा.ललित जी, परिस्थिति की मजबूरीयों में व्यक्ति, जब अपने लिए समस्याऐं एकञित कर लेता है तो गैर तो गैर, अपनों के ही कांधे पर बंदूक रख छोड़ता है! बहुत सुंदर आदरणीय..हार्दिक बधाई
Comment by वेदिका on July 7, 2013 at 7:26am

आदरणीय ललित जी!

सूरज के चारो तरफ रोशिनि होना तो समझ आता है लेकिन चारो तरफ धूप रहेगी तो फिर रात कब होगी ?  

इस बात से मै सहमत नही हो पा रही हूँ! 

सादर 

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 6:47am

आ.  ajay sharma  जी 

 आपका बहुत बहुत आभार 
 सादर 
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 6:45am

आ. coontee mukerji  जी 

 आपका बहुत बहुत आभार 
सड़ी व्यवस्था को झकझोरने वाला चाहिए। मजबूरी कहीं नहीं है 
 सादर 
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 6:43am

आ.  Dr.Prachi Singh जी 

 आपका बहुत बहुत आभार 
सड़ी व्यवस्था को झकझोरने वाला नज़र नहीं आता 
 सादर 
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 6:41am

Laxman Prasad Ladiwala  सर जी 

 आपका बहुत बहुत आभार 
 सादर 
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 6:40am

  आदरणीय गीतिका 'वेदिका' जी

आभार 
 सूरज के चारों तरफ रोशनी होती है 
सादर 

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