मेरा वजूद बस इक बार बेखबर कर दे
पनाह दे तो असातीन मोतबर कर दे
चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो
मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे
कोई निगाह तगाफुल करे न गैर को भी
सदा उठे जो बियाबाँ से चश्मे-तर कर दे
कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर
मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे
तमाम रात अंधेरों से भागता ही रहा
तमाम उम्र उजाला तो रूह भर कर दे
तगाफुल= उपेक्षा; असातीन= खम्भा ;…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on August 27, 2013 at 5:51pm — 15 Comments
बशर जब से यहाँ पत्थर में ढलना चाहता है
ये बुत भी आज पत्थर से निकलना चाहता है
रिहाई मांगता है आदमी दुनिया से फिर भी
जहाँ भर साथ में लेकर निकलना चाहता है
तुम्हारी जिद कहाँ तक रोक पाएगी सफ़र को
ये मौसम भी किसी सूरत बदलना चाहता है
जिसे पत्थर कहा तूने अभी तक मोम है वो
जरा सी आंच तो दे दो पिघलना चाहता है
भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर
जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता है
बशर=…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on August 25, 2013 at 9:44pm — 9 Comments
सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ
चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ
जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही
मौत आयी तब कही जलसा हुआ
रोटियां सब सेंकने में थे लगे
घर किसीका देखकर जलता हुआ
जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे
आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ
चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को
इक शजर बस फूलता-फलता हुआ
बिस्मिल = ज़ख्मी
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr Lalit Kumar Singh on August 10, 2013 at 6:39am — 16 Comments
दोस्त बनकर भूल जाने का हुनर आता नहीं
लोग कहते हैं के दस्तूरे सफ़र आता नहीं
जब रहम की आस में दम तोड़ता है आदमी
क्यों किसी के दिल-जिगर में वो असर आता नहीं
दरहकीकत छांव दे जो इस जहाँ की धूप से
अब हमारे ख्वाब में भी वो शजर आता नहीं
रंग-ओ-खुशबू है मगर,यह टीस है कुछ फूल को
वक्त जब माकूल रहता, क्यों समर आता नहीं
जब मुकाबिल तोप की जद में बरसती आग हो
फिर बशीरत के, सिवा कुछ भी नज़र आता…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on August 7, 2013 at 5:54am — 7 Comments
हमने तुम्हारी जात पर,जब लिख दिया तो लिख दिया
कुछ बेतुके जज्बात पर;जब लिख दिया तो लिख दिया
कितना सुहाना मुल्क है, तुमने कहा अखबार में
बीमार से हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
जब से खुले बाजार की रख्खी गयी है नींव तो
हरदिन लगे आघात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
नक्कारखाना बन गया, सुनता नहीं, कोई कहीं
दिन-रात के उत्पात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
कश्ती भंवर में है परेशां, नाखुदा कोई नहीं
फिर…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on August 6, 2013 at 6:30am — 18 Comments
इसी रास्ते से गुजरते रहे हम
दुआ जानते थे सो करते रहे हम
अब आये कभी गम तो फिर देख लेंगे
यही सोच कर बस संवरते रहे हम
उठाते बिठाते जगाते रहे है
मुकद्दर को झोली में भरते रहे हम
कोई है जो अन्दर, यही देखता है
कब उसकी निगाहों में गिरते रहे हम
समझ लें जो खुद को यही बस बहुत है
‘जो मैं हूँ’ , उसीसे तो डरते रहे हम
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr Lalit Kumar Singh on August 5, 2013 at 9:44pm — 8 Comments
भूख थी जेरे बह्स और प्यास भी था मुद्द'आ
फैसला होना नहीं था, मुल्तबी वह फिर हुआ
रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी
और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ
लाख बोलो कान पर,जूँ तक नहीं अब रेंगता
क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ या बददुआ
हाथ इनके हैं बहुत लम्बे, मगर डरना नहीं
चाहे संसद में गढ़ें वो नामुआफ़िक मजमुआ
वारदातें भी रहम की मांगती हैं हर नज़र
कुछ दरीचा हो यहाँ पर,…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 17, 2013 at 7:09am — 12 Comments
121 22 121 22
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जहाँ जरूरी हुआ अड़े हैं,
इसीलिए हम यहाँ खड़े हैं
जिन्हें जरूरत जहान भर की
वहीँ मशाइल बड़े-बड़े हैं
समय उन्हीं के लिए बना है
जिन्हें कि हर पल लगे बड़े हैं
मिली जरा सी उन्हें जो शुहरत,
लगे जताने बहुत बड़े है
जिन्हें नाकारा है तेरी दुनिया
हम उनके हक़ में सदा लड़े हैं
किसी की कमियों से क्या है लेना
अगर है खूबी, वहीँ अड़े…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 15, 2013 at 6:30pm — 7 Comments
221 2121 1221 212
बेख़ौफ़ सारी उम्र निकल जाये इस तरह
गिरने की बात हो न, संभल जाए इस तरह
तूफ़ान भी चले तो चरागा जला करे
दोनों ही अपनी राह बदल जाए इस तरह
हर सिम्त जिंदगी रहे, पुरजोश बारहां
जो मौत का भी होश,बदल जाए इस तरह
फैले कहीं जो बाहें तो बच्चों सा दौड़कर
मिलने को हर इक शख्स मचल जाए इस तरह
आंसू किसी की आँखों का, हर आँख से बहे
इस शहर की फ़ज़ा भी बदल जाये इस तरह…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 7, 2013 at 10:40pm — 12 Comments
बता दो क्या कर लोगे
सूरज के ही आगे पीछे रहती है बस धूप,
बता दो क्या कर लोगे
उनका पेट भरेगा, तेरी भांड में जाए भूख ,
बता दो क्या कर लोगे
तेरे ही काँधे पर चढ़कर छोड़ेंगे बन्दूक,
बता दो क्या कर लोगे
बेटा उनका आगे होगा, तुम्ही जाओगे छूट,
बता दो क्या कर लोगे
काला होगा धन उनका जब तेरा पैसा लूट,
बता दो क्या कर लोगे
कुर्सी तेरी वो बैठेंगे, तुम बस देना घूस,
बता दो क्या कर लोगे
मौलिक और…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 5, 2013 at 10:00pm — 16 Comments
मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना
आज सुबह से थिरक रहे हैं,चंचल चित,व्याकुल नयना
घनघोर घटा घर आंगन छाना,तुझमें ही छुप जाऊंगी
व्यथित ढूंढ जब होंगे प्रिय, तुरत सामने आ जाऊंगी
लग जाऊंगी जब सीने से, झूम बरसना तुम अंगना
मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना
पी-कहाँ, पपीहे कहते थे तुम, कल तडके घर आ जाना
मेरे साथ ही तुझको भी है, गीत ख़ुशी के फिर गाना
द्वार मिलन पर पलक बिछाए ठुमक रहे मेरे…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 4, 2013 at 10:00pm — 20 Comments
एक क्षण ,
Added by Dr Lalit Kumar Singh on July 2, 2013 at 5:30am — 18 Comments
कश्ती को बस इक बार जताना है मुझे भी
जब तैर लिया, पार हो जाना है मुझे भी
जो अपने सिवा खास किसी को न समझते
कितना हूँ मैं दुश्वार बताना है मुझे भी
तूफाँ से यही बात कही, मैंने यहाँ पर
हर हाल चरागा ही जलाना है मुझे भी
अब छूट घटाओं को कभी दे नहीं सकता
पानी तो हर एक हाल पिलाना है मुझे भी
मत सोच सफ़र, पाँव मेरे बांध के रखना
जब वक्त कहे, लौट के आना है मुझे भी
जो आग लगाना ही बड़ा काम…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 1, 2013 at 7:00am — 17 Comments
हर कदम खुशियाँ मिले, सबकी कवायद जिस लिए है
राम जाने दर्द क्यों, हर दिल में आखिर किसलिए है
भीड़ को तो आपका ही, इक इशारा चाहिए बस
पीछे-पीछे चल रहा जो, हाथ में माचिस लिए है
लोग मुझसे कह रहे थे, आदमी, इंसान है यह
गौर से देखा, तो जाना, दिल-जिगर बेहिस लिए है
मैं लडूंगा जब यहाँ, हर काम उसका भी बनेगा
साथ मेरा दे रहा, यह शख्स अबतक इसलिए है
पीठ पीछे, जो यहाँ, मेरी शिकायत कर रहा था
सामने आया तो देखा,…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 28, 2013 at 9:26am — 7 Comments
अपने मित्रों की सलाह पर कुछ परिवर्तन के साथ पुनः प्रेषित कर रहा हूँ -
जिंदगी इक छलावा के सिवा क्या है
मौत भी बस, मुदावा के सिवा क्या है
रोशनी की तड़प ही तो, अँधेरा है
हर उजाला,भुलावा के सिवा क्या है
शानो-शौकत, तमाशा है, यही जाना
बेवजह ही, दिखावा के सिवा क्या है
होश भी अब, कहीं दिखता नहीं, शायद
बद्सरंजाम लावा के सिवा क्या है
मोह में और ममता में उलझ जाना
यह किसी…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 27, 2013 at 7:00pm — 5 Comments
साधन में, सुधि में, समाधि ,संवाद में, ढूंढता हूँ संजोये नाम
कागज में, पाती में, दीये की बाती में, खोजा है बेसुध अविराम,
गैर की निगाहों में, पराजायी बाँहों में, या दिन हो या कोई शाम
जख्मों में, टीसों में,आहों में, शीशों में, हो मेरा शायद गुमनाम
डॉ. ललित
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr Lalit Kumar Singh on June 27, 2013 at 5:28am — 8 Comments
खुशबू समेटने से किसका हुआ भला है
जब-जब चिता जली है, चन्दन वहाँ जला है
बैठा रहा तो मुझको खुद से गिला था यारों
जब चल पड़ा तो सबको हर पल बहुत खला है
अब है किसे पता भी, माहौल कब ये बदले
हर शख्स देखने में लगता मुझे भला है
सुन वो कहाँ रहे थे, चर्चा चली जो मेरी
बेचैन हो गए, जब, उनका कहा भला है
जिसको अजीज़ माना, यूँ दूर ही रहे सब
जब काम आ पड़ा तो फिर से खलामला…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 26, 2013 at 7:30pm — 12 Comments
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