भूख थी जेरे बह्स और प्यास भी था मुद्द'आ
फैसला होना नहीं था, मुल्तबी वह फिर हुआ
रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी
और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ
लाख बोलो कान पर,जूँ तक नहीं अब रेंगता
क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ या बददुआ
हाथ इनके हैं बहुत लम्बे, मगर डरना नहीं
चाहे संसद में गढ़ें वो नामुआफ़िक मजमुआ
वारदातें भी रहम की मांगती हैं हर नज़र
कुछ दरीचा हो यहाँ पर, हर तरफ खुलता हुआ
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
वारदातें भी रहम की मांगती हरसू नज़र
इक दरीचा हो कहीं पर, उस तरफ खुलता हुआ
मेरे प्रिय वीनस भाई
‘मुद्द'आ’ उर्दूदां लोग जब उच्चारण करते हैं तो ‘मुद्दुआ’ ही करते हैं. और आ. दुष्यंत कुमार ने भी इसका प्रयोग इसी तरह किया है. आज तक किसी आलोचक ने ऊँगली नहीं उठाई. यह शुद्ध है. देखें -
“भूख है तो सब्र कर,रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है, जेरे बहस ये मुदद’आ
आप पहले व्यक्ति हैं. इसलिए आप असाधारण हैं.
आपने हौसला आफजाई की शुक्रिया. सादर
वारदातें भी रहम की मांगती हैं हर नज़र
कुछ दरीचा हो यहाँ पर, हर तरफ खुलता हुआ
वाह वा इस शेर ने तो लाजवाब कर दिया
मतले में मुद् दआ के साथ हुआ काफ़िया कैसे चला लिया सर जी ???
आदरणीय आपका आभार!
लाख बोलो कान पर,जूँ तक नहीं अब रेंगता
क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ या बददुआ
हाथ इनके हैं बहुत लम्बे, मगर डरना नहीं
चाहे संसद में गढ़ें वो नामुआफ़िक मजमुआ
umdaa sher karamati
रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी
और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ
वाह वाह! समाजी और सियासी तेवर की ग़ज़ल, बेबाक अशआर, बहुत खूब!
आदरणीय मेरे विचार से रेंगती अधिक उपयुक्त होगा।
man gaye
बहुत ही सुन्दर बात कही आपने! आपको मेरी हार्दिक बधाई!
एक निवेदन करना चाहता हूं कि इस पंक्ति को देखें-
//लाख बोलो कान पर,जूँ तक नहीं अब रेंगता//
आदरणीय मेरे विचार से रेंगती अधिक उपयुक्त होगा।
सादर!
रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी
और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ
लाख बोलो कान पर,जूँ तक नहीं अब रेंगता
क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ या बददुआ.... बहुत ही सही फ़रमाया आदरणीय .हर आमजन की बात कहती उम्दा गजल के लिए बहुत -२ बधाई आपको
रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी
और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ...बहुत खूब!
सुन्दर सामयिक गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आ० डॉ० ललित जी
सादर.
कुछ उर्दू शब्दों के रचना के निचे अर्थ लिखे तो अधिक आनंद आयेगा डा. साहब | सादर
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