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बेख़ौफ़ सारी उम्र निकल जाये इस तरह
गिरने की बात हो न, संभल जाए इस तरह
तूफ़ान भी चले तो चरागा जला करे
दोनों ही अपनी राह बदल जाए इस तरह
हर सिम्त जिंदगी रहे, पुरजोश बारहां
जो मौत का भी होश,बदल जाए इस तरह
फैले कहीं जो बाहें तो बच्चों सा दौड़कर
मिलने को हर इक शख्स मचल जाए इस तरह
आंसू किसी की आँखों का, हर आँख से बहे
इस शहर की फ़ज़ा भी बदल जाये इस तरह
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
इसे दूसरी तरह से कह कर देखा है, आ. वीनस भाई , कृपया देखें
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जो बोलने से पहले संभल जाए दोस्तों
दुश्मन रहे न यार बदल जाए दोस्तों
फैले कहीं जो बाहें तो बच्चों सा दौड़कर
मिलने को हर इक शख्स मचल जाए दोस्तों
जैसे झुकी सी शाख, सर उठा के फिर तनी
ठोकर का इल्म हो न, संभल जाए दोस्तों
आंसू किसी का देखके,हो आँखें नम जहाँ
इस शहर की फ़ज़ा यूँ बदल जाए दोस्तों
तूफ़ान भी जो आये, चरागों का जश्न हो
हर कोई अपनी राह निकल जाए दोस्तों
हर सिम्त जिंदगी रहे, पुरजोश इस तरह
जो मौत का इरादा ,बदल जाए दोस्तों
वाह वा डॉ साहब बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है
देर से आ पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
अगली ग़ज़ल का इंतज़ार रहेगा
आदरणीय ललित जी बस काफिया की पुनरावृत्ति खल रही है ,वैसे अशआर सभी पसंद आये दाद कबूल कीजिये
बेहतरीन लिखा है आपने आदरणीय, काफी दमदार प्रस्तुति, सादर
बहुत खूब गजल पेश की
बधाई आदरणीय ललित जी!
बेख़ौफ़ सारी उम्र निकल जाये इस तरह
गिरने का इल्म हो न, संभल जाए इस तरह
bahut khoobsurat
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