सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ
चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ
जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही
मौत आयी तब कही जलसा हुआ
रोटियां सब सेंकने में थे लगे
घर किसीका देखकर जलता हुआ
जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे
आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ
चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को
इक शजर बस फूलता-फलता हुआ
बिस्मिल = ज़ख्मी
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Saurabh Pandey जी का दिल से शुक्रिया
सादर
आदरणीय ललितजी, आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल दिल से वाहवाहियाँ ले रही है. हर शेर जबर्दस्त हुआ है.
दाद कुबूल कीजिये
सादर
बहुत सुंदर रचना है, सादर
सभी आदरणीय मित्रों एवं सुधीजनों का दिल से शुक्रिया
रोटियां सब सेंकने में थे लगे
घर किसीका देखकर जलता हुआ...........वास्तविकता लिए हुआ , शेर
बधाई आदरणीय डा. ललित जी
ललित भाई , सीधे साधे सरल शब्दों मे बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने , बधाई !!
चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को
इक शजर बस फूलता-फलता हुआ ---------- वाह !!
रोटियां सब सेंकने में थे लगे
घर किसीका देखकर जलता हुआ........................... एकदम सही बात , पक्का यथार्थ । बहुत बधाई आपको आदरणीय ललित जी ।
चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को
इक शजर बस फूलता-फलता हुआ
ati sundar sameecheen ghazal adarneey !! bahut badhai is sashakt kriti ki prastuti hetu .
{slow net pe hindi nahi type ho raha hai so roman me likh raha hoon }
वाह वाह आदरणीय शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये खासकर इस अशआर हेतु अधिक दाद कुबूल फरमाएं
जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही
मौत आयी तब कही जलसा हुआ वाह वाह
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