दोस्त बनकर भूल जाने का हुनर आता नहीं
लोग कहते हैं के दस्तूरे सफ़र आता नहीं
जब रहम की आस में दम तोड़ता है आदमी
क्यों किसी के दिल-जिगर में वो असर आता नहीं
दरहकीकत छांव दे जो इस जहाँ की धूप से
अब हमारे ख्वाब में भी वो शजर आता नहीं
रंग-ओ-खुशबू है मगर,यह टीस है कुछ फूल को
वक्त जब माकूल रहता, क्यों समर आता नहीं
जब मुकाबिल तोप की जद में बरसती आग हो
फिर बशीरत के, सिवा कुछ भी नज़र आता नहीं
शजर= पेड़ ; समर= फल; बशीरत= अंतर्द्रष्टि
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आ. पाण्डेय जी , सादर
रंग-ओ-खुशबू है मगर,यह टीस है कुछ फूल को
वक्त जब माकूल रहता, क्यों समर आता नहीं
क्या बात है, आदरणीय ललितजी, इस शेर ने कई तथ्यों को एक साथ उजागर किया है. जितना कहा उससे अधिक इंगित किया है इसने !
जब मुकाबिल तोप की जद में बरसती आग हो
फिर बशीरत के, सिवा कुछ भी नज़र आता नहीं
वाह, हुज़ूर वाह !
शुभ-शुभ
आदरणीय ललितजी अच्छी प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करे
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
वाह वाह आदरणीय बेहद शानदार ग़ज़ल सभी के सभी अशआर क्या खूब कहे हैं आपने, ढेरों बधाई स्वीकारें.
दोस्त बनकर भूल जाने का हुनर आता नहीं
लोग कहते हैं के दस्तूरे सफ़र आता नहीं
सुन्दर अति सुन्दर .... आ0 Dr Lalit Kumar Singh जी बधाई शुभकामनाये स्वीकारे .........
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