साधन में, सुधि में, समाधि ,संवाद में, ढूंढता हूँ संजोये नाम
कागज में, पाती में, दीये की बाती में, खोजा है बेसुध अविराम,
गैर की निगाहों में, पराजायी बाँहों में, या दिन हो या कोई शाम
जख्मों में, टीसों में,आहों में, शीशों में, हो मेरा शायद गुमनाम
डॉ. ललित
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
वाह वाह क्या बात है | सुन्दर रचना के लिए बधाई डॉ ललित कुमार सिंह जी
जख्मों में, pyaar me to aisa hi sambhav hai
टीसों में, fir pyaar ki sudhiya to teesh to dengi hi
आहों में, pyar ho aur meethi meethi sudhiya paas ho to aah to uthegi hi
शीशों में, bada mumkin hai har soo wahi chehra
हो मेरा शायद गुमनाम har sache pyar ka anzam to huya hi "gumnam"
wah wah wah wah whahhhhhhhhhhhh
wah wah guru ji
बहुत ही सुंदर रचना.....................
आदरणीय..बहुत खूब--बधाई कुबूल कीजिऐ
गजब -
बहुत खूब आदरणीय डाक्टर साहब-
बधाइयाँ
सुंदर चतुष्पदी पर बधाई लीजिये!!
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