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अपने मित्रों की सलाह पर कुछ परिवर्तन के साथ पुनः प्रेषित कर रहा हूँ -

 

जिंदगी इक छलावा  के सिवा क्या है

मौत भी बस, मुदावा के सिवा क्या है 

 

रोशनी की तड़प ही तो, अँधेरा है 

हर उजाला,भुलावा के सिवा क्या है 

 

शानो-शौकत, तमाशा है, यही जाना  

बेवजह ही, दिखावा के सिवा क्या है  

  

होश भी अब, कहीं दिखता नहीं, शायद   

बद्सरंजाम लावा के सिवा   क्या है 

 

मोह में और ममता में उलझ जाना

यह किसी ख़ास दावा के सिवा क्या है 

 

मुदावा = इलाज़ ;

बद्सरंजाम= जिस काम का अंजाम अच्छा न हो  

डॉ ललित 

मौलिक और अप्रकाशित

 

Views: 440

Comment

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Comment by Ketan Parmar on June 30, 2013 at 1:48pm
Bhot khub kahi sirji
Comment by Sumit Naithani on June 28, 2013 at 3:50pm

सुंदर 

Comment by aman kumar on June 28, 2013 at 9:03am

यु तो पूरी ग़ज़ल अच्छी बनी है आरंभ से जोरदार .....

Comment by वेदिका on June 27, 2013 at 10:05pm

बढ़िया गजल पर शुभकामनायें!! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 27, 2013 at 8:22pm

जिंदगी इक छलावा  के सिवा क्या है

मौत भी बस, मुदावा के सिवा क्या है ............वाह वाह, सुन्दर मतला, अच्छा किया आपने जो काफिया सुधार लिया, वरना पूरी ग़ज़ल ही गड़बड़ हो रही थी | 

 

रोशनी की तड़प ही तो, अँधेरा है 

हर उजाला,भुलावा के सिवा क्या है ............क्या बात है जनाब अच्छा शेर हुआ है, जरा देख लें कही तकाबुले रदीफ़ का दोष तो नही ?   

 

शानो-शौकत, तमाशा है, यही जाना  

बेवजह ही, दिखावा के सिवा क्या है ........... मिसरा सानी की अदायगी स्पष्ट नही है | 

  

होश भी अब, कहीं दिखता नहीं, शायद   

बद्सरंजाम लावा के सिवा क्या है .............माफ़ कीजिएगा किंतु कहन मुझे कमजोर लगा । 

 

मोह में और ममता में उलझ जाना

यह किसी ख़ास दावा के सिवा क्या है .......बढ़िया शेर, दाद क़ुबूल करें |

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