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अंतर मन में
अनंत  इच्छाएँ
बिल्कुल समन्दर
की लहरों की तरह
ठीक कुछ समय बाद
समाप्त हो जाती है
ऐसा लगता है कि
कितनी अपेक्षा से
प्रकृति ने जिन भावों
को जगाया था मन में
उन भावों को सपनो में
सजोकर बंदकर
अलसाई उनीदी आखे
फिर सोजाती है
तलाश है उस नीद की
जो  संतुष्टि के बाद
खुले आसमान के नीचे
बैभव से दूर बसुधा की माटी में
माँ के आँचल की तरह सुलाती है
सहलाती है और बताती है
की क्या होगा दूर चाँद के पार का संसार
जो अनंत है अनुपम है
जिसके सपनों में तू खोया है सोया है
माँ से बालपन में उस चाँद के लिए
कितनी बार रोया है
पर मन निशब्द है उदास है
कही न कही खोया विश्वास है
सब पाने की चाह में सब से दूर हो गया है
आँखों में नमी है धड़कन भी थमी है
पैर फिर भी सो गया है
उत्तर नहीं स्वयं प्रश्न हो गया है
क्यों  तलाश अधूरी है अभी मैंने जिया ही क्या
मेरी जिंदगी पूरी है
पैर पता नहीं है उसे की यदि  तलाश अधूरी नहीं होती
उसका नाम तलास नहीं होता
न उसे पाने के लिए बे सहारे माँ बाप का बेटा
गॉंव से दूर बिजली के चकाचौध में आकर अधेले
की तरह नहीं खोता
तलाश अनंत है जिसे मिलती है उसी का हो जाता है
उसकी निरंतरता में समंदर की लहरों की तरह
पुनः खो जाता है ....................
.
दिलीप कुमार तिवारी
मौलिक / अप्रकाशित 
 

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Comment

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Comment by दिलीप कुमार तिवारी on July 9, 2013 at 12:16am

आदरणीय  जीतेन्द्र जी आप का कमेन्ट ही बहुत है मेरे लिए धन्यवाद i

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on July 9, 2013 at 12:13am

आदरणीया  गीतिका जी धन्यबाद  आपने मुझे प्रोत्साहित  किया आप जैसे रचनाकारो  को देख कर पद कर सीख रहे है हम भी i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 8, 2013 at 9:28am
""सब पाने की चाहमें सब से दूर हो गया है आँखोंमें नमीहै धड़कन भी थमी है पैर फिरभीसोगया है उत्तरनहीं स्वयं प्रश्न हो गया है"".....आदरणीय..दिलीप जी, सुंदर व भावनात्मक रचना प्रस्तुति...!हार्दिक बधाई
Comment by वेदिका on July 8, 2013 at 4:38am

आपकी प्रथम रचना प्रतीत हो रही है, बढ़िया भावों को समेटा आपने।

कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयी है,,,  तलास,  बैभव,संतुस्ठी, 

तलाश एक निरंतर यात्रा है,

बधाई आदरणीय दिलीप जी! 

    

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