आज़ादी के कई सालों बाद
उसकी तलाश ज़रूरी लगती है .
प्रजातन्त्र की भौतिकवादी
प्रवित्रियो में लिप्त आज़ादी अधूरी लगती है.
आज़ादी की तलाश उन बcचो के सपनों में है
जिनका बचपन कलम-किताब छोड़ होटलों में बिकता है
आज़ादी की तलाश किसानों के खेतों में है
जिनके आखों में पानी और गले मे मौत है
आज़ादी की तलाश वेरोज़गार युवीमन में है
जहाँ आखरी डिग्री की आस है
जिससे भूखा पेट भरा जा सके
आज़ादी की तलाश फूटपाथ पर सोए लोगों…
ContinueAdded by दिलीप कुमार तिवारी on August 14, 2015 at 1:30am — 4 Comments
एक शहर
अत्यधिक आधुनिक टापुओ का है
जहाँ गरीवी बहुत बौनी दिखती है
हर गली में अमीरी गुलजार है
वहाँ गरीवो से अप्रत्यासित घ्रणा
अमीरों के अमीरी से बेशुमार प्यार है
वह "ग़ालिब "का शहर प्रेम से कितनी दूर हो गया है
हैवानियत ,दरिन्गीं ,लफ्फाजियो के लिए मशहूर हो गया है
इस शहर में रहते है भारत के कर्णधार
जिनका प्रिय पेशा है भ्रस्टाचार
ओ किसी भी काम में अपने को शिद्ध पुरुष मानते है
तोप ,प्याज ,अनाज से लेकर चारा तक खाने में माहिर है …
Added by दिलीप कुमार तिवारी on October 8, 2013 at 11:30pm — 13 Comments
संवेदन शील मन
बार-बार क्यों
डूबता उतराता है
संवेदना के समंदर में
हजारबार गोते खाता है
प्रश्नों का अम्बार है
आज तो मर्यादा का व्यापार है
वास्तव में संवेदनाहीन हो रहा संसार है
गरीवी ,लाचारी ,बेचारी ,बेरोजगारी और कुछ शब्द थे ,
जिनमें संवेदना का अधिकार व्याप्त था
संवेदनशील मन के लिए इन शब्दों का होना पर्याप्त था
किन्तु संवेदना की परिभाषा बदल गयी
जहाँ संवेदना थी ओ भाषा बदल गयी
आज अत्याचारी ,बलात्कारी, भ्रष्टाचारियों पर…
Added by दिलीप कुमार तिवारी on October 7, 2013 at 12:30am — 15 Comments
मै आदमी हूँ
सम्बेदंशील हूँ
मुझे कई आदमी
कहलाए जाने वालों
ने छला है I
छाछ फूककर
पीता हूँ हर-बार
क्यों की मेरा मुह
दिखावे के गर्म दूध से जला है I I
कल्पनाओ का समंदर
मेरे मन में भी है
कुछ पाने की चाह में
जीवन की राह में तुमसे मिला है I I I
मुझे रोकना नहीं
टोकना नहीं तुम
बढने दो मेरे पैर
ये हमारी दुश्मनी बदल कर
दोस्ती का सिलशिला है I I I I
मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप कुमार तिवारी…
Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 11, 2013 at 12:59am — 12 Comments
तपती वसुन्धरा में
श्रम सक्ती के समन्वय रूपी खाद में
निर्माणों के
विशालकाय पेंड़ो को रोपता है
अपने कंधो के सहारे ढोता है
गरीवी का बोझ
जिसमे उसका स्वाभिमान
दबा हैं , कुचला है
मन अनंत गहराईयों में
डूबता उतराता चुप है
शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है
निर्माणों के अंधे युग में आज
निर्माण से ही दूर हो गया है
मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप तिवारी रचना -८ /९/१ ३
Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 8, 2013 at 1:30am — 11 Comments
मन का "सुदामा होना"लाज़मी था
तेरी आखो के कृष्ण का इतना असर हो गया
क्या होती है गरीवी
सब कुछ खो जाने के बाद समझा
नही ,आमीर आदमी था
ये मिलन का इंतजार "द्रोपदी का चीर" हो गया
"भगीरथ प्रयत्न" कर-कर
मन आज अधीर हो गया
फिर भी "अग्नि परीक्षा" मेरी अधूरी है
आज भी मेरी-तेरी दूरी है
अंतर ह्रदय "दूर्वासा"है
क्रोध के ताप मे भी मिलने की आशा है
जानता है मन मिल कर तुमसे कुबेर हो जाएगा
संताप के ताप से फिर दूर हो जाएगा …
Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 8, 2013 at 1:00am — 8 Comments
ग़मों के घाव अभी भरे नही i
दवा में लगता मिला ज़हर है i i
बेनाम बस्ती में लोग रहते है i
उन्ही बस्तियों से बना शहर है i i
आदमी -आदमी को नहीं जाना i
ज़िन्दगी सात दिनों का सफ़र है i i
नदियाँ भी डरती है भरने से i
उनसे लगी बड़ी सूखी नहर है i i
खामोश आज सभी हवायें है i
वक़्त का उनपर भी असर है i i
मै भूला अपना रास्ता आज i
पता नहीं जाना मुझे किधर है i i
मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप कुमार तिवारी
Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 16, 2013 at 10:37pm — 7 Comments
वीणाधारी विद्यावाली , मातु शारदे तुम्हे नमन i
शव्द अर्थ के पुष्पों का ,व्याकरण बना तुमको अर्पण i i
संज्ञाए सेवाये करती ,सर्वनाम तेरे अनुचर i
क्रिया विशेषण की तारों से ,निकले वीणा के स्वर i i
नवरस के घुगरू प्यारे अलंकार की है झांझर i
काव्य गद्य श्रगारित तुमसे ,गीतवना महिमा गाकर i i
अनुपम छटा सवाँरे ,भाषाए है चरणो पर i
आलोडित मन मंदिर मेरा नेह सुधा तेरी पाकर i i
मुझको तेरा वरदान मिले ,चरणों में तेरे स्थान मिले i
शीख रहा माँ कविता करना ,अंतर मन…
Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 15, 2013 at 8:22pm — 5 Comments
आनंद जीवन है , शब्द मात्र नहीं
संसार के बियाबान सुनसान अधेरी राहों में,
रोशनी की तरह इसकी तलाश है
हम तुम यह जग जबसे है आनंद आस -पास है
ये उजड़ी गलियों में भी था ,थकी हुई सडको में भी है , तुम्हारे पगडण्डी में भी है i
बस इसे पाने का विश्वाश खो गया है ,हमारा अपनापन इससे कितनी दूर हो गया है i
कही हम इसे बदनाम बस्तियों में ढूढ़ते है
कही हम अपने से बड़ी हस्तियों में ढूढ़ते है
अल्पकालीन किन्तु सर्वव्याप्त है
जितना मिला क्या…
Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 14, 2013 at 7:30pm — 3 Comments
Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 7, 2013 at 8:00pm — 4 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |