For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक शहर
अत्यधिक आधुनिक टापुओ का है
जहाँ गरीवी बहुत बौनी दिखती है
हर गली में अमीरी गुलजार है
वहाँ गरीवो से अप्रत्यासित घ्रणा
अमीरों के अमीरी से बेशुमार प्यार है
वह "ग़ालिब "का शहर प्रेम से कितनी दूर हो गया है
हैवानियत ,दरिन्गीं ,लफ्फाजियो  के लिए मशहूर हो गया है
इस शहर में रहते है भारत के कर्णधार
जिनका प्रिय पेशा है भ्रस्टाचार
ओ किसी भी काम में अपने को शिद्ध पुरुष मानते है
तोप ,प्याज ,अनाज से लेकर चारा तक खाने में माहिर है
मै उनकी गाथा लिखने में असमर्थ हूँ
उनकी गाथा स्वयंभू जग जाहिर है
उनकी परम्परा पुस्तैनी परम्परा का पर्याय है
भारत की पुरातन परम्परा का ह्रास हो रहा है
इनकी परम्पराओ का नित-नूतन विकास हो रहा है
एक प्रश्न हर चौराहे पे खड़े आम -आदमी के आखों में है
कबतक इतिहास के पन्नों  को नोंचेगे ?
उत्तर तो मन- मानष में दफ़न है
जिस पर कई परत लिपटी कफ़न है
उसकी तलास में व्याकुल मन उत्तर दे रहा है
"कि जब- तक हम नहीं सोचेगे , तब तक इतिहास के पन्नो को नोचेगे i i "

मौलिक /अप्रकाशित
 -दिलीप कुमार तिवारी

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 12, 2013 at 9:50pm

दिल्ली दर्शन सही है !

Comment by बृजेश नीरज on October 12, 2013 at 8:03pm

आदरणीय अच्छा प्रयास है आपका! आपको हार्दिक बधाई!

एक निवेदन कि कविता में कविता का रहना जरूरी है!

टंकण त्रुटियों का ध्यान रखें!

सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2013 at 3:45pm

आदरणीय दिलीप जी ..दिल की सच्ची भड़ास निकली है आपने ..वाकई अपना अतीत गौरवमयी था ..लेकिन बेशर्म को फर्क नहीं पड़ता है ..इसलिए अब इनके खिलाफ सबको एक जुट करने के लिए लिखना है ..सदर बधायी के साथ 

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:25am

आदरणीय ए, अरुण जी इतने बड़े कवि की पन्तियों को लिख कर मेरा मान बढाया है आप के आशीर्वाद और स्नेह के लिए आभार

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:16am

आदरणीय शुशील जी रचना पसंद करने एवं आशीष प्रदान करने के लिए ह्रदय से आभार धन्यवाद .............

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:12am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी  आपका स्नेह और आप का बडप्पन है जो ऐसा कहता है बाकि दिल्ली के बारे में आप हमसे ज्यादा समझते है .......धन्यवाद

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:09am

आदरणीय अनंत जी आपका स्नेह हमारा सफल मार्गदर्शन है .......धन्यवाद

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:06am

आदरणीया प्राची जी सादर प्रणाम ........हम आप के स्कूल के छात्र है आप का आशीष मिलता रहेगा हम शीखते रहेगें i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 10, 2013 at 4:52pm

आ० दिलीप कुमार तिवारी जी

दिल्ली शहर मे मानवीय मूल्यों के ह्रास को प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति..

अतुकांत अभिव्यक्तियों में यदि पंक्तियों को थोड़ा छोटा लिखा जाए और अंतर प्रवाह में निर्बाधता का ध्यान रखा जाए तो सपाटबयानी या गद्यात्मकता से बचा जा सकता है.

जिस पर कई परत लिपटी कफ़न है.........कफ़न शायद पुल्लिंग शब्द है!

कुछ टंकण त्रुटियाँ भी रह गयी हैं 

शुभकामनाएं 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:29pm

आदरणीय सर्व प्रथम आपका ओबीओ परिवार में हार्दिक स्वागत है, आप दिल्ली दर्शन करवाने में सफल रहे हैं बहुत ही सुन्दर रचना हुई है. कृपया कंटक त्रुटियों पर ध्यान दें. इस प्रयास पर मेरी ओर बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service