For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आनंद / दिलीप कुमार तिवारी

आनंद जीवन है , शब्द मात्र नहीं
संसार के बियाबान  सुनसान  अधेरी राहों  में,
रोशनी की तरह इसकी तलाश  है
हम तुम यह जग जबसे है आनंद आस -पास है

ये उजड़ी गलियों में भी था ,थकी हुई सडको में भी है , तुम्हारे पगडण्डी में भी है i
बस इसे पाने का विश्वाश खो गया है ,हमारा अपनापन इससे कितनी दूर हो गया है i

कही हम इसे  बदनाम बस्तियों में ढूढ़ते है 
कही हम अपने से बड़ी हस्तियों में ढूढ़ते है
अल्पकालीन किन्तु सर्वव्याप्त है  
जितना मिला क्या पर्याप्त है
इसकी सभी तितलियाँ पंख बिहीन है 
ऊचाई जितनी हो पार  करना है
इसलिए उड़ने में  तल्लीन है 
आओ कठिन को सरल करे
खोजने के सवाल को हल करे 
साधारण है पर सत्य बना दे
तुम्हे आनंद का आकार बता दे
ये माँ बाप के लाचार आँखों में रहता है
रोज अपने बेटे से कहता है
तुम्ही को मैंने "आनंद "मानकर जीवन लुटाया है
पर क्या कहूँ कैसे कहूँ इस पड़ाव में आकर तुम्हे नहीं पाया है
सच में "आनंद "अभी अधूरा है
तुम पालो तुम्हारा जीवन अभी पूरा है
मै  रोज वृद्धाश्रम में तुम्हारे लिए दुआ करता हूँ
जब से तुम गए हो हरपल एक बार मरता हूँ
"आनंद "तुम्हे देख कर मिल जाता था
मन बच्चा है तेरे बच्चो में मिल जाता था
तुमने ज़िन्दगी में मुझे ऐसा क्यों मजबूर किया
"आनंद "के लिए मुझे "आनंद "से क्यों दूर किया
मौलिक /अप्रकाशित 
दिलीप कुमार तिवारी

दिलीप कुमार तिवारी

Views: 345

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 10:30pm

बहुत ही मार्मिक पंक्तियाँ । आदरणीय ।

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on July 15, 2013 at 7:14pm

धन्यवाद  आपने पसंद किया आदरणीय अरुण कुमार जी i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 8:53pm

आनंद को परिभाषित करने का सुंदर प्रयास, सुंदर रचना......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service