For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन का "सुदामा होना"लाज़मी था 
तेरी आखो के कृष्ण का इतना असर हो गया
क्या होती है गरीवी
सब कुछ खो जाने के बाद समझा
नही ,आमीर आदमी था
ये मिलन का इंतजार "द्रोपदी का चीर" हो गया
"भगीरथ प्रयत्न" कर-कर
मन आज अधीर हो गया
फिर भी "अग्नि परीक्षा" मेरी अधूरी है
आज भी मेरी-तेरी दूरी है
 अंतर ह्रदय  "दूर्वासा"है
क्रोध के ताप मे भी मिलने की आशा है
जानता है मन मिल कर तुमसे कुबेर हो जाएगा
संताप के ताप से फिर दूर हो जाएगा

मौलिक / अप्रकाशित दिनांक  रचना ०७/०९/१३

दिलीप तिवारी

Views: 385

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 11, 2013 at 3:25pm

अभिव्यक्ति की अंतर्धारा प्रभावित करती है...

किसी की निःशब्द महानता व कर्म विशालता के समक्ष स्वयं को सुदामा समझना बहुत बहुत सुंदरता से व्यक्त हुआ है

अभिव्यक्ति के अंत में ऐसा लगता है कि अंदर का क्रोध ही इस ना पाटी जा सकने वाली विलगता का कारण है... जिसके समाप्त होते ही ये क्षीणता की दीवारें मिट जायेंगी और कुबेर के खजाने सामान अनंत सुख की प्राप्ति होगी 

गहन चिंतन को सुन्दर पौराणिक बिम्बों से बहुत ख़ूबसूरती से व्यक्त किया है..

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर 

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on September 11, 2013 at 12:16am

मुझे आप लोगो  द्वारा दिया गया कमेंट मेरे लिए आशीर्वाद है जो मेरे कविता को नयी दिशा देगा सादर
प्रणाम के साथ आभार ........................

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 1:36pm

आ0 दिलीप जी सारगर्भित रचना बधाई स्वीकारें । 

Comment by vijayashree on September 10, 2013 at 12:25pm

सुंदर रचना  दिलीप  कुमार जी बधाई स्वीकारें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 10, 2013 at 12:54am

बहुत सुंदर रचना आदरणीय दिलीप जी बधाई स्वीकारें

Comment by Meena Pathak on September 9, 2013 at 10:55pm

सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें आ० दिलीप जी

Comment by विजय मिश्र on September 9, 2013 at 1:21pm
प्रयोगात्मक शैली में सुंदर रचना ,बधाई दिलीपजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 9:37am
वाह !!! दिलिप भाई वाह !!! धार्मिक, पौराणिक प्रतीकों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया !! सुन्दर रचना !! बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service