चुरा लेता है दिल सबका ,
बड़ा चित चोर है मोहन ।
कि हर जर्रे में बसता है ,
नही किस ओर है मोहन ।
निगाहोँ में भरा हो जब ,
प्रभू के प्रेम का प्याला ।
दिखायी हर जगह देगा ,
तुम्हे वो बांसुरी वाला ।
हर सच्चे दीवाने को
यही महसूस होता है ,
है छाया हर जगह उसकी
बसा हर ठौर है मोहन ।
न दौलत का वो भूखा है ,
न रिश्वत से ही बिकता है ।
हमारी आँख का तारा ,
मोहब्बत से ही बिकता है ।
ज़माना कुछ भी करले पर
झुका सकता नही उसको ,
लेकिन प्रेम के आगे
बड़ा कमज़ोर है मोहन ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Comment
आदरणीया प्राची जी
एक सीख देने वाला व्यक्ति भले ही स्वयं को गुरु मान ने से इनकार करे
तो ये उसका बड़प्पन है पर अगर सीख लेने वाला श्रद्धा से न झुका तो मेरे
देखे वो सीख न सकेगा । मै एक सवेंदनशील और भावनाओं से भरा इंसान हूँ और कभी कभी
पागल हो जाता हूँ कि इन भावनाओं को कैसे शब्दों में उतार दूँ ,,,,,,,,,सोना तो बहुत है
पर गहने बनाना नही आता .......
और आप जैसे लोग मेरी कविता पर जब टिप्पणी करते है तो ये ही मेरे लिए
बहुत ख़ुशी की बात है ..............
सादर ..................._/\_..................
नीरज जी
यह मंच सात्विक साहित्यिक साधना का एक गंभीर मंच है.
किसी भी सुझाव और समझाने बूझने के परिपाटी के प्रति .... यदि रचनाकार का लहजा संयत न हो तो,टिप्पणी में बेतुके गीतों की पंक्तियाँ कोई सार्थक भाव संप्रेषित करने में सक्षम हों सकेंगी, मुझे इसमें संशय है
खैर..
न यहाँ कोइ स्वयं को गुरु मानता है, न कहता है, न कहाता है .. इन अन्यथा के विशेषणों से बच कर ही हम सहजता से तथ्यपरक चर्चाएं करें समझें, यही निवेदन है.
साहित्य साधना अनवरत चलती रहे
शुभ कामनाएं
आदरणीया प्राची जी क्षमा चाहूंगा आपने तो कुछ और ले लिया
मेरी बात का। आप की टिप्पणी पढ़ के सोच में पड़ गया
जो मै सोच भी नही सकता था आपने ऐसा अर्थ कैसे ले लिया
मेरी बात का .......खैर फिर भी मै अपनी बात को स्पष्ट करना चाहूंगा
बेवज़ह मेहरबानी से मेरा मतलब है किसी का निस्वार्थ
भाव से मार्ग दर्शन करना ...... एक माँ अपने बच्चे को चलना
सिखाती है तो उसका पूरा ध्यान बच्चे के चलने पे रहता है .
वो चलती इस लिए है कि वो बच्चे को चलना सिखा सके ,,,,,,
केवल उस वक्त बच्चे के लिए माँ का चलना एक वज़ह हो सकता
है पर माँ के स्वयं के लिए कोई निजी प्रयोजन नही है
चलने का,,,,,,, यहाँ हमारे देश में हमने गुरु को भगवान् से
भी ऊंचा दर्ज़ा दिया है ......भगवान् जो बेवज़ह बिना कारण
ही आप पर कृपा करे बिना किसी स्वार्थ के आपको राह दिखाए .
और सीख देने वाला गुरु हो ही जाता है .......
बस इतना ही बोलूँगा इस बार भी अगर कोई बात आप को गलत
लगे तो उसके लिए पहले से ही क्षमा प्रार्थी हूँ ।
नीरज मिश्रा जी
यदि आप टिप्पणी को ठीक से ध्यान देकर पढ़ें तो आप सुझाव अवश्य ही समझ पायेंगे.
लेकिन जो समझना ही न जाहे उसे किसी भी भाषा में किसी भी तरह से समझाया नहीं जा सकता.
यदि आप मंच पर सीखने सिखाने और समझने समझाने को बेवजह की मेहरबानी मानते हैं तो मैं आदरणीय प्रधान संपादक महोदय से यह निवेदन अवश्य करूंगी कि आपकी किसी भी अपरिपक्व रचना को मंच पर अनुमोदन न मिले, ताकि हम गलती से भी आपकी रचना पर सुझाव में अपना वक़्त जाया न करें.
डॉ० प्राची
सदस्य टीम प्रबंधन
आदरणीया प्राची जी एक गाना सुना करता हूँ अक्सर
तुम पग पग पे समझाते ।
हम फिर भी समझ न पाते ।
और आप फिर भी समझाते ।
क्या बात है ...................
किसी की ऐसी मेहरबानी बेवज़ह
हो तो उसके लिए श्रद्धा अपने आप
ही ह्रदय में जगह कर जाती है ......
हर बार मेरा ऐसा मार्ग दर्शन करने के लिए
दिल के भावों से आपका अनुग्रह ._/\_
Yateendra bhai thanks
आदरणीय कल्पना जी बहुत बहुत आभार आपका ।
हम कहाँ रखेंगे ये प्यार आपका ।
बहुत बहुत अनुग्रह पूर्ण धन्यवाद
आदरणीय राजेश भाई .._/\_
धन्यवाद प्रीती जी
शुक्रिया कुन्ती जी
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