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अनाद्यानंत  आकाश में तैरते 

पारदर्शी गोलाकार 
अविरल निर्विकार 
असंख्य सूक्ष्म कण ...
स्पर्श कर सम्पूर्ण सृष्टि 
चले आते हैं मेरे पास
प्रति क्षण -
मेरे संस्पर्श को ...
और लिए जाते हैं, गुपचुप 
मुझमे से 
मेरा ही सुरभित नेह अंश,
पूरे ब्रह्माण्ड में बिखराने ...
और मैं 
पारदर्शी निगाहों में प्रेमाश्रु लिए 
एकटक निहारती हूँ 
प्रकृति की सम्पूर्णता को,
अक्सर करती
अनकही अनसुनी अनगिन बातें ...

 

मौलिक और अप्रकाशित  

डॉ० प्राची

Views: 879

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 2:38pm

प्रिय शशि पुरवार जी , रचना के भावों पर आपका अनुमादन प्राप्त हुआ ..आपका हृदय से आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 2:37pm

अभिव्यक्ति की सहाहना कर लेखन विश्वास को संबल प्रदान करने के लिए आभार आ० अरुण निगम जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 2:36pm

रचना की भाव दशा आपके पाठक हृदय को संतुष्ट कर सकी, यह जान लेखन को आश्वस्ति मिली है आ० वंदना तिवारी जी 

सादर धन्यवाद 

Comment by shashi purwar on July 14, 2013 at 10:47pm

waah behad sundar bhav abhivyakti sundar rachna prachi ji badhai aapko


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 9:47pm

धरातल से दूर शून्य से परे, अद्वितीय रचना..............

Comment by Vindu Babu on July 14, 2013 at 5:28pm
आदरेया प्राची महोदया आपने रचना में जिस आत्मिक संवाद का वर्णन किया वह आत्मिक विकास के चरम से ही निकल सकता है।
रचना इतनी उन्नत है कि बार बार पढने के लिए चित्त आकर्षित हो रहा है।
उत्कृष्ट भावों को साझा करने लिए आपका सादर आभार।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 14, 2013 at 11:00am

रचना में भावदशा की स्वीकार्यता के अनुमोदन से अभिव्यक्ति को मान देने के लिए आपकी आभारी हूँ आ० सौरभ जी 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 14, 2013 at 10:58am

रचना के भावों पर आपके उदार अनुमोदन के लिए आभारी हूँ आदरणीय बृजेश जी 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 14, 2013 at 2:40am

भाव-दशा के इस विशिष्ट स्वरूप का हार्दिक स्वागत करते हुए आपकी रचना को सादर धन्यवाद कह रहा हूँ

Comment by बृजेश नीरज on July 13, 2013 at 10:25pm

आदरणीया प्राची जी भावों की गहनता और एकाग्रता में ही ऐसी रचनायें जन्म लेती हैं। कल्पना ने जो ऊंचाइयां छुई हैं वहां तक पहुंचना आसान नहीं। भाव जिस तरह बरबस छलक गए हैं वह बस आपकी लेखनी का ही कमाल है।
आपको हार्दिक बधाई इस रचना पर!

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