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आदरणीया गुल सारिका जी:
सफ़र पर होने के कारण उत्तर में विलंब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
आपके उत्साह वर्धन से उक्त रचना सार्थकता को प्राप्त हुई, हार्दिक धन्यवाद।
ऐसे ही संबल देते रहें।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय सौरभ भाई :
आपकी जुलाई १८ की स्नेहमय कोमल प्रतिक्रिया अभी सफ़र से लौटने पर पढ़ी,
अत: उत्तर में विलंब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
आपका स्नेहसिक्त आशीर्वाद और मनोहारी भावाभिव्यक्ति दोनो मेरा उत्साहवर्धन करते हैं।
परम आदर एवं आभार सहित।
विजय निकोर
मौन की भाषा तो सबसे ताकतवर होती है...शब्द नही लौट सकते कभी उदास..उन्हें उन तक पहुचना ही होता है जिनसे जो कहना है...
मौन पर बहुत सुन्दर रची हुइ आपकी रचना ..बहुत बहुत बधाई !!
शब्द भले ही उदास लौट आए
मौन की अपनी ही शब्दावली होती है
जिस बिन्दु पर शब्द गूंगे और भाषा बहरी हो जाती है
उस वक्त मौन प्रखर होकर सम्प्रेषण के दायित्व को निभा ले जाता है। सुन्दर रचना .. चिंतन के लिये उत्प्रेरित करती सी ....
आदरणीय विजय भाई, सही कहिये तो आपकी उँगलियों को चूम लेने को दिल चाहता है जो आपके उर्वर मनस की वृत्तियों के सामंजस्य से इतने सान्द्र शब्द उकेरती रहती हैं.
कई दिनों बाद, आदरणीय, कई दिनों बाद.. आपकी इतनी उत्कृष्ट रचना आयी है. कई बार आपके शब्द-प्रक्षेपणों से मन उकता जाता है, जिसे मैं हठात् बोल देता हूँ.
लेकिन इस प्रस्तुति में जिस ऊँचाई से आपने पवित्र भावनाओं को सार्थक अभिव्यक्ति दी है वह आपके कहे के प्रति नत करती है. हर पंक्ति संप्रेषण का अन्यतम उदाहरण प्रतीत हुआ है मुझे. और, आखिरी बंद ने .. ओह, नम कर दिया, साहब !
इस अभिव्यक्ति के लिए सादर धन्यवाद तथा ढेर सारी शुभकामनाएँ..
आदरणीय संदीप जी:
आपकी प्रतिक्रया उत्साहवर्धक और प्रेरक है मेरे लिए -
हार्दिक धन्यवाद ।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया वंदना जी:
आपके औदार्य को नमन। रचना की सराहना के लिए आभारी हूँ।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय विजय मिश्र जी:
भावी आशा मन में संजोए आपके सदभावी आशीर्वचनों के लिए बहुत धन्यवाद।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय अतेन्द्र जी:
रचना की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ।
धन्यवाद।
सादर,
विजय निकोर
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