बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
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ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर कारखानों पर
ये फन वरना मिलेगा जल्द रद्दी की दुकानों पर
कलन कहता रहा संभावना सब पर बराबर है
हमेशा बिजलियाँ गिरती रहीं कच्चे मकानों पर
लड़ाकू जेट उड़ाये खूब हमने रातदिन लेकिन
कभी पहरा लगा पाये न गिद्धों की उड़ानों पर
सभी का हक है जंगल पे कहा खरगोश ने जबसे
तभी से शेर, चीते, लोमड़ी बैठे मचानों पर
कहा सबने बनेगा एक दिन ये देश नंबर वन
नतीजा देखकर मुझको हँसी आई रुझानों पर
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(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Comment
क्या बात है ! लगता है आपने बम बनाने का कारखाना लगा रखा है ! क्या धमाके किए हैं सर जी ! मज़ा आ गया ! वाह !
वीनस भाई, कैल्कुलस को हिन्दी में कलन भी कहते हैं जिसमें इण्टिग्रेशन के दौरान ’लिमिट टेण्ड्स टू इन्फ़िनिटी..’ का बड़ा महत्त्व है.
आदरणीय धर्मेन्द्र जी का इशारा उसी कैल्कुलस यानि कलन की ओर है जिसके अनुसार इण्टिग्रेशन के क्रम में अनुभूत संभावनाएँ इन्फ़िनिटी यानि अनन्त होती हैं. लेकिन इस गणित का हकीक़त यानि हल कुछ और ही कहता है जो उस शेर के सानी से स्पष्ट है.
शुभम्
शुक्रिया विजय मिश्र जी
बहुत बहुत धन्यवाद Dr.Prachi Singh जी
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी
बहुत बहुत शुक्रिया shashi purwar जी
कलन कहता रहा संभावना सब पर बराबर है
हमेशा बिजलियाँ गिरती रहीं कच्चे मकानों पर
सभी का हक है जंगल पे कहा खरगोश ने जबसे
तभी से शेर, चीते, लोमड़ी बैठे मचानों पर
वाह! बहुत सुन्दर गज़ल आ० धर्मेन्द्र जी .. ये दो शेर तो खास बहुत पसंद आये
बहुत बहुत बधाई
बहुत उम्दा मतला हुआ है धर्मेंद्र जी ....दाद कुबूल हो
waah bahut khoob dharmendra ji
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