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वो मानते हैं कि हो सकती उनसे कोई खता नहीं

खुद तक तो खुदा के सिवा कोई और पहुंचता नहीं|

वो जुस्तजू करते हैं हमारे क़दमों के निशाँ की भी

उनके हाथों में छुपे खंजर को तो कोई खोजता नहीं|

वो जिन्होंने तय की हैं बुलंदियां लाशों की सीढ़ी पे

कदमों में लगे खून से कब फिसल जाएँ पता नहीं|

वो हो जाते हैं नाराज़ हमारी ज़रा सी लडखडाहट से

जैसे उनके जहां में मदमस्त तो कोई गिरता नहीं|

वो हैं जैसे भी दूर उनसे सोच में भी नहीं हो सकते

बिना किनारों के तो कोई धारा सागर में बहता नहीं|

 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 10:33pm

adarniy bahut hi umda gazal .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 4:42pm

आपके प्रयास के प्रति शुभकामनाएँ.

आप अपने मिसरों के वज़्न को भी ग़ज़ल की प्रस्तुति के साथ दिया करें.   शुभेच्छाएँ

कृपया ध्यान दे...

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