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आदरणीया गीतिका वेदिका जी!
आपने मेरी रचना पर दृष्टी डाली मेरी रचना धन्य हो गयी।
आदरणीया,, ये एक सच्ची घटना है जिसका पूर्व और पश्चात् स्पष्ट किया गया है,
युगल ने अपनी तरफ से सभी किरदारों को भविष्य को देखते हुए समझाने की कोशिश की थी। समझना या न समझना किर्दार के उपर है और ऐसा कहा गया है की जब तक इंसान को ठोकर न लगे तब तक उसे सम्भलना नही आता,
सादर जीत
आदरणीया प्राची जी! नमन
आपने मेरी रचना पर दृष्टी डाली, आपका सादर आभार
आदरणीया, मेरी प्रथम रचना होने के कारण मै छोटी सी कथा में ही सब कुछ समझाना चाहता था इसलिए रचना प्रभावी नही हो पाई
मार्गदर्शन बनाये रखें
आदरणीय योगराज जी! नमन
यह मेरी प्रथम रचना है, मै लेखन के क्षेत्र में एकदम नया हूँ, इसलिए मुझे कथा में कसावट देना नही आ पाया। ये कथा मैंने सच्ची घटना को देख कर लिखी है। इसलिए उपस्थित पात्रों का जिक्र कर दिया।
रामेश्वर का जिक्र कथा में इसलिए किया गया की उन्होंने निकम्मेपन के साथ पूरे घर की बागडोर को हाथ में ले रखा है, और समस्या खड़ी होने पर परे हट जाते है,
दुल्हन के गहने का जिक्र इकोनोमी दर्शाने के लिए किया,
प्रापर्टी को देखते हुए तीनों पात्रो का नाम देना पड़ा क्युकी कल विपिन की भी शादी होनी है,
अपनी अगली रचना में आपके द्वारा दिए गये सुझावों का अनुकरण करूंगा। आपने मेरी रचना पर दृष्टी डाली आपका तहे दिल से शुक्रिया,
संदेशप्रद लघुकथा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय 'जीत' जी!
आज भी कई लोग भारत में परम्परा के पीड़ित है। ऐसा नही कहूँगी कि परम्पराएँ रुढ़िवादी होती है, परम्पराएँ कुछ सोच के ही हमारे बुजुर्गों ने बनाई होंगी। किन्तु हर सोच के उद्देश्य को जाने बिना उसका अनुसरण करना एक अन्धानुकरण ही तो है।
यह बात सही है की सोना जब ख़रीदा जाता था तो उसके पीछे सुनिश्चित भविष्य निधि को बनाना होता है, लेकिन अपनी रोजी रोटी को दांव पर लगाकर क्या भविष्य निधि बनाना??
ये तो वही बात हुयी न की जड़े काट के फूल को संवारना ...!
गाँव के सबसे ज्यादा समझदार और पढ़े लिखे किसान युगल के किरदार को थोड़ी और मजबूती देनी थी, ताकि यह घटना एक दुष्प्रभाव के रूप संदेश न देकर एक सार्थक संदेश देने में सफल होती।
बहरहाल, आपकी प्रथम प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ। आप लिखें और ओ बी ओ परिवार को अपने लेखन से लाभान्वित करे, आदरणीय जीत जी!!
सादर गीतिका 'वेदिका'
आ० जितेन्द्र जी
लघुकथा का कथ्य बेहद सामयिक , सामाजिक और महत्वपूर्ण है....जिसके लिए आपको बधाई.
संप्रेषणीयता , कहानी के स्थान पर किस्सागोई जैसी प्रतीत होती है.. जिसे अभी और समय चाहिये ताकि गठन लघुकथा के अनुरूप हो सके.
इस सुन्दर प्रयास के लिए आपको हार्दिक बधाई.
शुभकामनाएँ
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