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ग़ज़ल : वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो

बहर: हज़ज मुसम्मन सालिम

वही दिलकश नज़ारा हो वही मौसम सुहाना हो,

वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो,

जुबां से कह नहीं पाया नज़र से तुम नहीं समझी,

बताना हो बड़ा मुश्किल कठिन उससे छुपाना हो,

पलटकर देखना तेरा ग़लतफ़हमी सही मेरी,

इसी धोखे के चलते बेवजह हँसना हँसाना हो,

अदा इक तो सनम कातिल खुदा से तुमने है पाई,

गिरे बिजली मेरे दिल पे जो तेरा भीग जाना हो,

चुराने आँखों से काजल फलक से आ गए बादल,

घटा घनघोर घिर आये जो नज़रों का झुकाना हो.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 12:58am

हा हा हा बड़ी गज़ब ग़ज़ल है ...

अल्हड जवानी सी रोमैंटिक ,,, :))))))))))

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 2:30pm

हार्दिक आभार आदरणीय  :-))))

आपका मन खुश हुआ लेखन कार्य सफल हुआ मेहनत रंग लाई . आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2013 at 1:31pm

गुदगुदी.. सी हुई..   :-))))

लिखते रहें .. मन खुश हो गया भाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:21pm

आदरणीय अभिनव भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई जानकार प्रसन्नता हुई, हार्दिक आभार आपका.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:20pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया वंदना जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:20pm

आभार केतन भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:20pm

आभार राज साहब

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:19pm

आभार जीतेंद्र भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:19pm

हार्दिक आभार बृजेश भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:19pm

हार्दिक आभार आदरणीया अनुपमा जी

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