जब सोचने का नज़रिया
बदल जाये तो
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं
खो जाया करती हैं...
काफिले के संग
चल निकलो तो बात अलग,
वर्ना परछाईं भी अक्सर
साथ छोड़ जाया करती है...
वो लोग अलग होते हैं
जो डूब के पार निकलते हैं,
हौसलों से तो बिन पंख भी
ऊँची उडान भरी जाया करती है...
स्वार्थी की कोई ज़ात नहीं
जानवरों सा जीवन उसका,
इंसान को तो चुल्लू भर पानी में भी
मौत आ जाया करती है...
ऊपर वाले ने भी
खेल अजीब खेला है,
जो दुनिया उजाड़े किसी की
किस्मत उसी को मिल जाया करती है,
'पियू' और क्या लिखे उसके सामने
प्यार करने वालों की तो अक्सर
लकीरें भी धोखा दे जाया करती हैं...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
.......प्रियंका ''पियू ''
Comment
राज साहब आभार आपका .....
शुक्रिया .....कुंती जी...
.अरुन शर्मा जी ..शुक्रिया सर आपकी इस ख़ास दाद के लिया बहुत बहुत शुक्रिया .....सराहते रहिये यूँही ....शुक्रिया
आदरणीया यदि नज्म के बारे में कुछ जानकारी उपलब्ध करा दे ंतो बड़ी कृपा होगी। मुझे इस विधा के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
सादर!
जब सोचने का नज़रिया
बदल जाये तो
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं
खो जाया करती हैं...
बहुत सुन्दर!
अपनी मनोभावनाओं को जैसे आपने मोतियों की माला में पिरो दिया है.प्रियंका जी. बहुत सुंदर.
सादर
कुंती
स्वार्थी की कोई ज़ात नहीं
जानवरों सा जीवन उसका,
इंसान को तो चुल्लू भर पानी में भी
मौत आ जाया करती है... .... वाह वाह वाह लाजवाब पंक्तियाँ आदरणीय प्रियंका जी बहुत ही सुन्दर रचना इन पंक्तियों पर विशेष तौर से बधाई स्वीकारें.
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