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मुक्तिका: ख्वाब में बात हुई..... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

ख्वाब में बात हुई.....

संजीव 'सलिल'
*
ख्वाब में बात हुई उनसे न देखा जिनको.
कोई कतरा नहीं जिसमें नहीं देखा उनको..

कभी देते वो खलिश और कभी सुख देते.
क्या कहें देखे बिना हमने है देखा किनको..

कोई सजदा, कोई प्रेयर, कोई जस गाता है.
खुद में डूबा जो वही देख सका साजनको..

मेरा महबूब तो तेरा भी है, जिस-तिस का है.
उसने पाया उन्हें जो भूल सका है तनको..

उनके ख्यालों ने भुला दी है ये दुनिया लोगों.
कोरी चादर हुआ बैठा है 'सलिल' ले मनको..

***************

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on December 23, 2010 at 6:26pm

bagee jee!

ek too na mila saree duniya mili bhee to kya hai.... ek too jo mila bakee naa bhee mile to bahut hai.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 19, 2010 at 6:22pm

आचार्य जी, मैं जानता हूँ कि रचनायें पढ़ी जाती है , क्योकि औसतन २५०० प्रतिदिन का हिट OBO पर ऐसे नहीं मिल रहा है , किन्तु टिप्पणी न देने का चलन ऐसा चल पड़ा है कि लगता है जैसे पोस्ट को किसी ने पढ़ा ही नहीं, इसी चिंता को लेकर एक सार्थक बहस कि शुरुवात भी मैने किया था, जिसका लिंक नीचे है .....कृपया एक बार पढना चाहेंगे ...

http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:34997

Comment by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 6:04pm

bahut abhar. kisi ne to parha ise.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 19, 2010 at 12:38pm

बहुत ही सुंदर मुक्तिका, प्रभु से बतियाती हुई पक्तियां बहुत ही खुबसूरत बन पड़ी है , बहुत खूब | बधाई आचार्य जी |

कृपया ध्यान दे...

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