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हक़ किसी का छीनकर, कैसे सुफल पाएँगे आप?
बीज जैसे बो रहे, वैसी फसल पाएँगे आप।
यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,
बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।
भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,
फिर निगलने के लिए भी, घट- गरल पाएँगे आप।
निर्बलों की नाव गर, मझधार छोड़ी आपने,
दैव्य के इंसाफ से, बचकर न चल पाएँगे आप।
प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,
मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।
शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये,
क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।
याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,
हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीय केतन कुमार जी, प्रशंसात्मक शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय प्राची जी, आपके उत्साह जनक शब्द प्रफुल्लित कर गए। आपका हृदय से आभार
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आपकी प्रोत्साहित करती हुई सुंदर टिप्पणी के साथ उपस्थिति से अपर हर्ष हुआ आपका हार्दिक आभार
सादर
bhut sunder kha hai ji
प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,
मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।//////सुन्दरतम
याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,
हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप। ///परम सत्य
वाह आदरणीया उम्दा ग़ज़ल //हार्दिक बधाई //सादर
अति सुंदर प्रस्तुति.
आदरणीया कल्पना रामानी जी
सभी अशआर बहुत चिंतन ,दर्शन परक हैं , खूबसूरत हैं ...बहुत पसंद आये
हार्दिक बधाई
एक सन्देश को समाहित किये हुए एक उम्दा ग़ज़ल ..
क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।
याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,
हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आ...ये तीनो पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद आयेएं ..सादर बधाई और प्रणाम के साथ
याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,
हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।
bahut hi sunder shudh hindi ghazal
meri or se aapko sat sat naman
बेहद सुन्दर ग़ज़ल रची है माननीया कल्पना रामानी जी, सभी अश'आर दिल में गहरे उतरने की कैफियत रखते हैं. इस शानदार प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
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