सोचता हूँ
क्या होगा
इस नीले आकाश के पार
कुछ होगा भी
या होगा शून्य
शून्य
मन सा खाली
जीवन सा खोखला
आँखों सा सूना
या
रात सा स्याह
कैसा होगा सबकुछ
होगी गौरैया वहां?
देह पर रेंगेंगी
चीटियाँ?
या होगा सब
इस पेड़ की तरह
निर्जन और उदास;
सागर की बूँद जितना
अकल्पनीय
बिना जाए
जाना कैसे जाए
और जाने को चाहिए
पंख
पर पंख मेरे पास तो नहीं
चलो पंछी से पूछ आएं
गरुड़ से।
ढूँढते हैं गरुड़ को।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी आपके शब्दों ने बहुत बल दिया। आपको रचना पसंद आयी, मेरा प्रयास सार्थक हुआ।
आपका हार्दिक आभार!
जब मैं था तो तू और तेरा संसार नहीं, जब तू और तेरा संसार है तो मैं नहीं. असम्प्रज्ञात दशा के पार जाने का मनोभाव सभी जीना चाहते हैं. क्योंकि देही की सीमा के पार ही अनुभव और भाव के संसार का उन्मुक्त आकाश है. किन्तु, देही की परिधि अपनी समस्त तथाकथित ज्ञानेन्द्रियों की सबल उपस्थिति के बावज़ूद भावदशा के संसार में सायास विचरण नहीं कर पाती.
मानवीय संवेदना के इस ऊहापोह को सार्थक शब्द मिले हैं. विवश मनुज के विवशता के भाव को सुन्दरता से अभिव्यक्त करने के आपको हार्दिक बधाई, बृजेशजी. बहुत सुन्दर कविता हुई है.
शुभ-शुभ
आदरणीया प्राची जी आपके शब्दों ने मेरे प्रयास को सार्थकता प्रदान की है। आपका हार्दिक आभार!
सादर!
आदरणीय बृजेश जी
आपकी दार्शनिकता और चिंतन प्रधान अभिव्यक्तियाँ बाँध लेती हैं... और उन्हें पढ़ना अब अनुभव सा होता जा रहा है...
दृश्य को पीछे छोड़ अदृश्य की तलाश में जाना.... पर उसके लिए भी चाहियें स्थूल पँख... अब यह उड़ान भरने के लिए पँख कहाँ से मिलें .... ये तो गरुड ही बता सकता है...
अनंत को जानने के लिए जिस तरह से इंगित का प्रयोग हुआ है उसपर आपको बहुत बहुत बधाई
सदर.
सादर आभार ...आदरणीय
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार! जीत से गीत बनने पर बधाई और शुभकामनाएं!
आदरणीय बृजेश जी ,भावनात्मक रचना प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ..
आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!
शून्य
मन सा खाली
जीवन सा खोखला
आँखों सा सूना
या
रात सा स्याह........................आदरणीय ब्रजेश जी दिल को छू गई आप की रचना | हार्दिक बधाई स्वीकारें, सादर
आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!
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