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सोचता हूँ

क्या होगा

इस नीले आकाश के पार

 

कुछ होगा भी

या होगा शून्य

 

शून्य

मन सा खाली

जीवन सा खोखला

आँखों सा सूना

या

रात सा स्याह

 

कैसा होगा सबकुछ

होगी गौरैया वहां?

देह पर रेंगेंगी

चीटियाँ?

 

या होगा सब

इस पेड़ की तरह

निर्जन और उदास;

सागर की बूँद जितना

अकल्पनीय

 

बिना जाए

जाना कैसे जाए

और जाने को चाहिए

पंख

पर पंख मेरे पास तो नहीं

 

चलो पंछी से पूछ आएं

गरुड़ से।

ढूँढते हैं गरुड़ को।

                 - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on August 1, 2013 at 11:31pm

आदरणीय सौरभ जी आपके शब्दों ने बहुत बल दिया। आपको रचना पसंद आयी, मेरा प्रयास सार्थक हुआ।
आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2013 at 1:26am

जब मैं था तो तू और तेरा संसार नहीं, जब तू और तेरा संसार है तो मैं नहीं.  असम्प्रज्ञात दशा के पार जाने का मनोभाव सभी जीना चाहते हैं. क्योंकि देही की सीमा के पार ही अनुभव और भाव के संसार का उन्मुक्त आकाश है.  किन्तु, देही की परिधि अपनी समस्त तथाकथित ज्ञानेन्द्रियों की सबल उपस्थिति के बावज़ूद भावदशा के संसार में सायास विचरण नहीं कर पाती.

मानवीय संवेदना के इस ऊहापोह को सार्थक शब्द मिले हैं.  विवश मनुज के विवशता के भाव को सुन्दरता से अभिव्यक्त करने के आपको हार्दिक बधाई, बृजेशजी.  बहुत सुन्दर कविता हुई है.

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश नीरज on July 31, 2013 at 5:40pm

आदरणीया प्राची जी आपके शब्दों ने मेरे प्रयास को सार्थकता प्रदान की है। आपका हार्दिक आभार!
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 31, 2013 at 10:31am

आदरणीय बृजेश जी 

आपकी दार्शनिकता और चिंतन प्रधान अभिव्यक्तियाँ बाँध लेती हैं... और उन्हें पढ़ना अब अनुभव सा होता जा रहा है...

दृश्य को पीछे छोड़ अदृश्य की तलाश में जाना.... पर उसके लिए भी चाहियें स्थूल पँख... अब यह उड़ान भरने के लिए पँख कहाँ से मिलें ....  ये तो गरुड ही बता सकता है... 

अनंत को जानने के लिए जिस तरह से इंगित का प्रयोग हुआ है उसपर आपको बहुत बहुत बधाई 

सदर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2013 at 8:58pm

सादर आभार ...आदरणीय 

Comment by बृजेश नीरज on July 27, 2013 at 8:45pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार! जीत से गीत बनने पर बधाई और शुभकामनाएं!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2013 at 8:40pm

आदरणीय बृजेश जी ,भावनात्मक रचना प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ..

Comment by बृजेश नीरज on July 26, 2013 at 7:43pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Meena Pathak on July 26, 2013 at 7:32pm

शून्य

मन सा खाली

जीवन सा खोखला

आँखों सा सूना

या

रात सा स्याह........................आदरणीय ब्रजेश जी दिल को छू गई आप की रचना | हार्दिक बधाई स्वीकारें, सादर 

Comment by बृजेश नीरज on July 26, 2013 at 5:17pm

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!

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