मैंने बस धीरज माँगा था,तुमने ही अधिकार दिया;
कितने पत्थर रोज़ तराशे,फिर मुझको आकार दिया।
बादल,बरखा,बिजली,बूँदें,क्या कुछ मुझमें पाया था;
पथ-भूले को इक दिन तुमने,दिग्दर्शक बतलाया था।
लेकिन मेरे पथ पर चलना,श्रद्धा लाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥
आशा को थकन नहीं होती,इच्छा को विश्राम कहाँ;
जब तक साँसों में उष्मा है,जीवन को आराम कहाँ।
कण-कण जमते हिमनद में भी,बाक़ी रहता ताप कहीं;
मनभावन आलिंगन में भी,छू जाता संताप कहीं।
कितने राग अलापे गुपचुप,मिल कर गाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥
यूँ होता छायामय हो कर,मेरी हस्ती पर छाते;
अपनी चोटों से भी बढ़ कर,मेरी पीड़ा सहलाते।
सर्वस्व निछावर कर मेरी,अक्षमता को बल देते;
सागर के तप्त कछारों को,सावन हो कर जल देते।
दुख के कितने अंकुर फूटे,सुख उपजाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥
किसमें है दुस्साहस इतना,गर्व किसी का चूर करे;
कौन किसी को पंथ सुझाए,किसकी दुविधा दूर करे।
अपने बल पर आँधी उठती,अपने बल पर सोती है;
अपनी करुणा से तर हो कर,आँख किसी की रोती है।
ख़ुद की लौ से अंतर्मन को,स्वयं जगाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥
जिसको तुमने दर्प कहा था,वो केवल ख़ुद्दारी थी;
जिसको अस्त बताया तुमने,उगने की तैयारी थी।
मेरे शब्दों की हलचल को,तुच्छ विलाप कहा तुमने;
मेरे गीतों की कलकल को,बस आलाप कहा तुमने।
तिरस्कार के घटाटोप में,मान बढ़ाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
झूम झूम बहता गया, भाई रवि प्रकाशजी .. शब्द-संयोजन से अभिभूत हूँ. प्रयासरत रहें और आपके भाव सतत बहें.
अंतिम बंद के लिए विशेष बधाई स्वीकारिये.
आशा को थकन नहीं होती .. इसे ऐसा करके देखिये तो .. आशा कभी नहीं थकती है.. .
आप इस रचना को सुगढ़ हरिगीतिका छंद में बाँध सकते थे.
शुभ-शुभ
आदरणीय रवि प्रकाश भाई जी बहुत ही सुन्दर रचना रची है आपने कहीं कहीं प्रवाह बाधित हो रहा है कुछ पंक्तियाँ तो सीधे दिल में उतर गईं,
धड़कन के तुम दरबान बने इसको यदि ऐसा कहें तो धड़कन के दरबान बने तुम तो शायद प्रवाह बाधित नहीं होगा.कृपया अन्यथा न लें यह केवल मेरा एक सुझाव भर है. रचना पर बधाई स्वीकारें.
bahut sundar rachana...bahut bahut badai
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ................... |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online