For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन तक आना शेष रहा - (रवि प्रकाश)

मैंने बस धीरज माँगा था,तुमने ही अधिकार दिया;
कितने पत्थर रोज़ तराशे,फिर मुझको आकार दिया।
बादल,बरखा,बिजली,बूँदें,क्या कुछ मुझमें पाया था;
पथ-भूले को इक दिन तुमने,दिग्दर्शक बतलाया था।
लेकिन मेरे पथ पर चलना,श्रद्धा लाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

आशा को थकन नहीं होती,इच्छा को विश्राम कहाँ;
जब तक साँसों में उष्मा है,जीवन को आराम कहाँ।
कण-कण जमते हिमनद में भी,बाक़ी रहता ताप कहीं;
मनभावन आलिंगन में भी,छू जाता संताप कहीं।
कितने राग अलापे गुपचुप,मिल कर गाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

यूँ होता छायामय हो कर,मेरी हस्ती पर छाते;
अपनी चोटों से भी बढ़ कर,मेरी पीड़ा सहलाते।
सर्वस्व निछावर कर मेरी,अक्षमता को बल देते;
सागर के तप्त कछारों को,सावन हो कर जल देते।
दुख के कितने अंकुर फूटे,सुख उपजाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

किसमें है दुस्साहस इतना,गर्व किसी का चूर करे;
कौन किसी को पंथ सुझाए,किसकी दुविधा दूर करे।
अपने बल पर आँधी उठती,अपने बल पर सोती है;
अपनी करुणा से तर हो कर,आँख किसी की रोती है।
ख़ुद की लौ से अंतर्मन को,स्वयं जगाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

जिसको तुमने दर्प कहा था,वो केवल ख़ुद्दारी थी;
जिसको अस्त बताया तुमने,उगने की तैयारी थी।
मेरे शब्दों की हलचल को,तुच्छ विलाप कहा तुमने;
मेरे गीतों की कलकल को,बस आलाप कहा तुमने।
तिरस्कार के घटाटोप में,मान बढ़ाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥


मौलिक व अप्रकाशित

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on August 2, 2013 at 9:24pm
धन्यवाद सौरभ जी।मैं प्रयासरत हूँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 3:59pm

झूम झूम बहता गया, भाई रवि प्रकाशजी .. शब्द-संयोजन से अभिभूत हूँ.  प्रयासरत रहें और आपके भाव सतत बहें.

अंतिम बंद के लिए विशेष बधाई स्वीकारिये.

आशा को थकन नहीं होती .. इसे ऐसा करके देखिये तो .. आशा कभी नहीं थकती है.. .

आप इस रचना को सुगढ़ हरिगीतिका छंद में बाँध सकते थे.

शुभ-शुभ

Comment by Ravi Prakash on July 30, 2013 at 12:25pm
ग़ज़ब का परामर्श है।मार्गदर्शन करतें रहें।
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 12:08pm

आदरणीय रवि प्रकाश भाई जी बहुत ही सुन्दर रचना रची है आपने कहीं कहीं प्रवाह बाधित हो रहा है कुछ पंक्तियाँ तो सीधे दिल में उतर गईं,

धड़कन के तुम दरबान बने इसको यदि ऐसा कहें तो धड़कन के दरबान बने तुम तो शायद प्रवाह बाधित नहीं होगा.कृपया अन्यथा न लें यह केवल मेरा एक सुझाव भर है. रचना पर बधाई स्वीकारें.

Comment by Lata tejeswar on July 28, 2013 at 6:02pm

bahut sundar rachana...bahut bahut badai

Comment by Ravi Prakash on July 28, 2013 at 9:25am
thanks
Comment by Shyam Narain Verma on July 27, 2013 at 5:59pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ...................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service