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मन तक आना शेष रहा - (रवि प्रकाश)

मैंने बस धीरज माँगा था,तुमने ही अधिकार दिया;
कितने पत्थर रोज़ तराशे,फिर मुझको आकार दिया।
बादल,बरखा,बिजली,बूँदें,क्या कुछ मुझमें पाया था;
पथ-भूले को इक दिन तुमने,दिग्दर्शक बतलाया था।
लेकिन मेरे पथ पर चलना,श्रद्धा लाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

आशा को थकन नहीं होती,इच्छा को विश्राम कहाँ;
जब तक साँसों में उष्मा है,जीवन को आराम कहाँ।
कण-कण जमते हिमनद में भी,बाक़ी रहता ताप कहीं;
मनभावन आलिंगन में भी,छू जाता संताप कहीं।
कितने राग अलापे गुपचुप,मिल कर गाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

यूँ होता छायामय हो कर,मेरी हस्ती पर छाते;
अपनी चोटों से भी बढ़ कर,मेरी पीड़ा सहलाते।
सर्वस्व निछावर कर मेरी,अक्षमता को बल देते;
सागर के तप्त कछारों को,सावन हो कर जल देते।
दुख के कितने अंकुर फूटे,सुख उपजाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

किसमें है दुस्साहस इतना,गर्व किसी का चूर करे;
कौन किसी को पंथ सुझाए,किसकी दुविधा दूर करे।
अपने बल पर आँधी उठती,अपने बल पर सोती है;
अपनी करुणा से तर हो कर,आँख किसी की रोती है।
ख़ुद की लौ से अंतर्मन को,स्वयं जगाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

जिसको तुमने दर्प कहा था,वो केवल ख़ुद्दारी थी;
जिसको अस्त बताया तुमने,उगने की तैयारी थी।
मेरे शब्दों की हलचल को,तुच्छ विलाप कहा तुमने;
मेरे गीतों की कलकल को,बस आलाप कहा तुमने।
तिरस्कार के घटाटोप में,मान बढ़ाना शेष रहा।
धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Prakash on August 2, 2013 at 9:24pm
धन्यवाद सौरभ जी।मैं प्रयासरत हूँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 3:59pm

झूम झूम बहता गया, भाई रवि प्रकाशजी .. शब्द-संयोजन से अभिभूत हूँ.  प्रयासरत रहें और आपके भाव सतत बहें.

अंतिम बंद के लिए विशेष बधाई स्वीकारिये.

आशा को थकन नहीं होती .. इसे ऐसा करके देखिये तो .. आशा कभी नहीं थकती है.. .

आप इस रचना को सुगढ़ हरिगीतिका छंद में बाँध सकते थे.

शुभ-शुभ

Comment by Ravi Prakash on July 30, 2013 at 12:25pm
ग़ज़ब का परामर्श है।मार्गदर्शन करतें रहें।
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 12:08pm

आदरणीय रवि प्रकाश भाई जी बहुत ही सुन्दर रचना रची है आपने कहीं कहीं प्रवाह बाधित हो रहा है कुछ पंक्तियाँ तो सीधे दिल में उतर गईं,

धड़कन के तुम दरबान बने इसको यदि ऐसा कहें तो धड़कन के दरबान बने तुम तो शायद प्रवाह बाधित नहीं होगा.कृपया अन्यथा न लें यह केवल मेरा एक सुझाव भर है. रचना पर बधाई स्वीकारें.

Comment by Lata tejeswar on July 28, 2013 at 6:02pm

bahut sundar rachana...bahut bahut badai

Comment by Ravi Prakash on July 28, 2013 at 9:25am
thanks
Comment by Shyam Narain Verma on July 27, 2013 at 5:59pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ...................

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