For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेजान कमरे में
टूटी खटिया पे लेटा
करवट लेते हुए
आँखों के पूरे सूनेपन के साथ
कभी कभी खिड़की के
बाहर देखता हूँ
कैसी है दुनियां
क्या वैसी ही है
जैसी पहले हुआ करती थी
दर्द के समंदर में
निस्पंद जड़ सा
सोचता रहा
अपने ही अपने नहीं रहे
ये गुमशुदी का जीवन कब तक
एक चिंता जाती
तो दूसरी उत्पन्न
देखता रहता हूँ
सजीव कंकाल सा
इधर उधर
बस जिंदा हूँ
औपचारिक

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक /अप्रकाशित 

Views: 568

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on August 4, 2013 at 2:10pm

हार्दिक आभार आदरणीया महिमा जी //सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 2:06pm

धीर गंभीर चितंन मनन के क्षणों का सुंदर प्रस्तुति आ. राम शिरोमणि जी बधाई

Comment by ram shiromani pathak on August 4, 2013 at 1:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय आशुतोष मिश्र  जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on August 4, 2013 at 1:47pm

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी //सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 10:51pm

अकेले होने के क्रम में यह भी एक 'मज़ेदार' फेज है, भाई.. .

बढ़िया.. .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 31, 2013 at 4:47pm

hardik badhayee sweekarein 

Comment by ram shiromani pathak on July 30, 2013 at 10:20pm

hardik aabhar bhai arun sharma anant ji//saadar

Comment by ram shiromani pathak on July 30, 2013 at 10:15pm

hardik aabbhar bhai brijesh singh jj//saadar

Comment by बृजेश नीरज on July 30, 2013 at 6:44pm

आदरणीय राम भाई, लाजवाब! बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 3:55pm

बेहतरीन भाई बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति वाह क्या कहने हार्दिक बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
21 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
14 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service