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ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

उमर भर साथ तू शामिल रही परछाइयों में,

सहा जाता नहीं है दर्द-ए-दिल तन्हाइयों में,

जरा सी बात पे रिश्ता दिलों का तोड़ते हैं,

उतर पाते नहीं जो प्यार की गहराइयों में,

भला इन्सान कोई दूर तक दिखता नहीं है,

बुराई घुल रही तेजी से है अच्छाइयों में,

जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,

जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में,

निगाहों को दिखाकर ख्वाब ऊँचें आसमां का,

गिराते लोग हैं धोखे से गहरी खाइयों में....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by MAHIMA SHREE on July 31, 2013 at 11:40am
जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,
जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में....
जीवन की कडवी सच्चाई को बयाँ करता शेर। लाजवाब। . आ. अरुण जी बहुत -२ बधाई आपको
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 31, 2013 at 10:55am

तहे दिल से शुक्रिया जीतेंद्र भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 31, 2013 at 10:55am

हार्दिक आभार भाई चन्द्र शेखर जी

Comment by बसंत नेमा on July 31, 2013 at 10:54am

आ0 अरुनजी बहुत ही उम्दा  रचना ..बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 31, 2013 at 10:54am

आदरणीय डॉ. सूर्या बाली सर जी आपने ज्ञान की बात बताई इस हेतु हार्दिक आभार आपका किन्तु यदि उमर की जगह उम्र करूँगा तो वज्न बदल जायेगा 12 की जगह २१ हो जायेगा. कृपया मार्गदर्शन करें. 

यदि उमर भर की जगह हमेशा कर दूँ तो कैसा रहेगा ?

सादर धन्यवाद.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 31, 2013 at 10:51am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय बृजेश भाई जी स्नेह बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 31, 2013 at 10:51am

हार्दिक आभार अनुज राम शिरोमणि पाठक भाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 31, 2013 at 9:26am

उमर भर साथ तू शामिल रही परछाइयों में,

सहा जाता नहीं है दर्द-ए-दिल तन्हाइयों में,...........वाह वाह ! बहुत ही खुबसूरत मतला से  शुरुआत

जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,

जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में,...............वाह वाह! क्या  खूब कहा 

बहुत ही उम्दा गजल हुयी, आदरणीय अरुण अनंत जी, तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये

  

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 31, 2013 at 12:21am

उमर भर साथ तू शामिल रही परछाइयों में,

सहा जाता नहीं है दर्द-ए-दिल तन्हाइयों में, और फिर 

निगाहों को दिखाकर ख्वाब ऊँचें आसमां का,

गिराते लोग हैं धोखे से गहरी खाइयों में.... क्या गजल कही है आदरणीय आपने। दिली दाद कुबुलें। वाह्ह्ह!!!

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 30, 2013 at 11:29pm

अनंत भाई बहुत ही खूबसूरत आशार कहें हैं...पूरी की पूरी ग़ज़ल ही अच्छी हुई दिल से दाद कुबूल करें...मतले के ऊला  के पहले शब्द उमर को छोडकर : उमर मुसलमानों के दूसरे खलीफा थे यहाँ पर आपको उम्र बांधना है (आयु के संदर्भ में) ...बस इसको दुरुस्त कर लें तो मज़ा और दूना हो जाएगा॥ 

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