महिमा पैसो की
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पर पैसो के मैने तो देखे नही ।
फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥
पकडते है दोनो हाथो से सभी ।
पर पकड मे किसी के वो आता नही ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥
पूजता है मन्दिर मज्जिद मे यही
ये खुदा से बडा तो होता नही ।
पर खुदा से कम भी वो होता नही ।।......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥
अपनो को दुश्मन बनाता यही ।
दुश्मन को अपना बनाता यही ॥
पर किसी का सगा भी वो होता नही ॥ ........ फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥
खनक पे इसकी नचते सभी ।
देख कर इसको बिकते सभी ।
पर खरीददार सम इसके होता नही ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥
दूर हो तो भी चिंता बढाता यही ।
नये नये सपने सुहाने दिखाता यही ।
पर पास जिसके है वो भी सोता नही ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥
हकिकत यही है फसाना यही ।
जिन्दगी का हर तराना यही ।
पर कभी सुर मे ये होता नही ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥
लिये हाथ खाली आये सभी ।
पाने को इसको बौराये सभी ।
पर भरे हाथ जग से कोई जाता नही .... ॥......... फिर क्यू वो कही पे ठहरता नही ॥
"मौलिक व अप्रकाशित"
31/07/13
Comment
आ0 बिजय जी आज की यही हकिकत है .....आप ने रचना को समय दिया ..तहेदिल से शुक्रिआ ..धन्यवाद ....
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