अच्छा !!!!
तो प्रेम था वो !!!
जबकि केंद्रित था लहू का आत्मिक तत्व
पलायन स्वीकार चुकी भ्रमित एड़ियों में !
किन्तु -
एक भी लकीर न उभरी मंदिर की सीढियों पर !
एड़ियों से रिस गईं रक्ताभ संवेदनाएं !
भिखमंगे के खाली हांथों की तरह शुन्य रहा मष्तिष्क !
हृदय में उपजी लिंगीय कठोरता के सापेक्ष
हास्यास्पद था-
तोड़ दी गई मूर्ति से साथ विलाप !
विसर्जित द्रव का वाष्पीकृत परिणाम थे आँसू !
हाँ !
शायद प्रेम ही था !
अभीष्ट को निषिद्ध में तलाशती हुई ,
संडास में स्खलित होती बीमार पीढ़ी का प्रेम !
.
.
.
................................................. अरुन श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सौरभ सर ,
//आपका कवि यहीं छटपटाता है//
सच कहा आपने ! उसी छटपटाहट का परिणाम है ये या ऐसी रचनाएँ ! पता नहीं क्यों , किसी भी परिस्थिति में प्रेम का विकृत रूप सहन करना मेरे लिए मुश्किल होता है ! बीमारी को प्रेम कहना कठिन है !
//प्रेम किसी अन्य ओछे भाव का नाम नहीं हो सकता// सहमत हूँ आदरणीय ! तभी तो ऐसे भावों को प्रेम कहते देख मेरा विरोध प्रखर हो जाता है ! कभी कभी भाषाई मर्यादा लांघता हुआ भी ! आपने जो भी कहा , याद है ! और सच कहूँ तो आपके और सीमा मैम के कारण ही मैं लगातार प्रयास में हूँ कि कुछ सकारात्मक भी लिखूं ! लिख भी रहा हूँ ! शीघ्र ही प्रस्तुत होऊंगा
आप प्रतिक्षित थे ! आप आए , बड़ी बात है ! सादर !
क्या कहूँ ! प्रेम, प्रेम के विभिन्न आयामों के चौरस पर आपकी कलम सदा उर्वर रही है. यह अवश्य है कि आपके प्रेम का आकाश दैहिक-भाव विन्यास से आगे भावनाजन्य समर्पण की यात्रा का साक्षी होता है.
मेरा निवेदन था और आज भी है, प्रेम किसी अन्य ओछे भाव का नाम नहीं हो सकता. उस संदर्भ में हुआ कोई व्यवहार --या व्यापार भी-- प्रेम के परिणाम का पर्याय नहीं. परन्तु, है जग ही में रहना के भाव-वृत्त में जीवन और इसके पहलुओं को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता न ! बस, आपका कवि यहीं छटपटाता है. छटपटाता हुआ दीखता भी है. परिणाम.. आपकी ऐसी रचनाएँ होती हैं.
मैं प्रस्तुत रचना की सान्द्रता को महसूस कर रहा हूँ, कारण चाहे जो हों
संप्रेषणीयता ने प्रभावित किया है.
शुभकामनाएँ और बधाइयाँ.
सीमा अग्रवाल मैम , आप सतत मार्गदर्शन करती रहीं हैं ! यथासंभव मैं प्रयास भी करता हूँ आपके सुझावों को अपनाने की ! लेकिन कुछ न कुछ ऐसा दिख जाता है कि मन खिन्न हो उठता है ! कभी कभी कुछ अच्छा भी लिखा रहा हूँ इन दिनों ! जल्द ही पढ़वाउंगा आपको ! :-))))
इस कविता के सन्दर्भ में आपकी कही बातों से सहमत हूँ ! आपका हार्दिक धन्यवाद !
सिर्फ अपनी बात कहूंगी इसे किसी प्रतिक्रिया से उपजी प्रतिक्रिया न समझिएगा
सबसे पहले तो विषय को एक बिलकुल ही नए ढंग से आत्मसात कर मन को बुरी तरह झिंझोड़ देने वाले अंदाज में बात कहने के लिए बहुत बहुत बधाई .......
सच को बताना नकारात्मकता नहीं होता ,कभी भी नहीं होता
प्रेम और प्रेम के भ्रम के बीच अंतर तलाशती एक दुखी भावना की कविता है ये ,जो प्रदूषित मस्तिष्क की तहों को खोलने के प्रयास में है l
परन्तु फिर भी कहूंगी काव्य में सहजता सुगमता और सरसता बहुत ज़रूरी है मंतव्य आप अवश्य ही समझ रहे होंगे (कई बार कह चुकी हूँ आपसे ) .....हार्दिक शुभकामनाएं .........
दिल दिमाग को भावशून्य करता है इंसान का टूटना...नये आवेग से उठकर खुद को संभाल लेना जीवन है, और जीवन बहुत अनमोल है ,नकारात्मकता लाकर जाया न करें...कविता आपकी सुन्दर रची है उसके लिए बधाई ..
महिमा श्री मैम ! इस रचना पर एक स्त्री के हस्ताक्षर ने सचमुच बल दिया मुझे ! आपका तहेदिल से आभारी हूँ ! सादर !
गजब। … आदरणीय अरुण जी। । दो दिनो से पढ़े जा रही थी.। हर बार.. मस्तिक में मरोड़ सी उठती दिशाहीन युवाओ के कुंठित मन मस्तिक पर गहरी वेदना आपकी रचना में अभिवयक्त हुयी है। बहुत -२ बधाई
//एड़ियों से रिस गया लहू का लाल रंग !//
को
//एड़ियों से रिस गईं रक्ताभ संवेदनाएं //........ पढ़ा जाय !
अभिन्न मित्र चंद्र शेखर पाण्डेय जी ! आपने सच कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है ! समाज में होने वाले कुकृत्यों के प्रति मन जब भी भारी हुआ इस तरह की भारी नाद लिए हुए रचनाएँ हो गईं ! शायद रचना का अप्रत्यक्ष पक्ष अधिक संदर्भित हो गया और बिम्ब असहज करने वाले ! फिर भी आपकी सराहना अत्यंत सुखद रही ! सच कहूँ आप जैसों से मिला हौसला ही ऐसा लिखने को प्रेरित करता है ! और एक बात और - मैं इन नकारात्मक भावों को अपने जीवन में स्थाई न होने दूँगा !
//एक रचनाकार भावों की तद्नुभूति तो करता है पर अपनी रचना से वो उतना ही अनासक्त होता है जितना कि एक सिद्ध योगी अपने कर्मों से, जितना कि शल्य क्रिया कर रहा चिकित्सक अपने मरीज से// .... आपकी ये पंक्ति ही मेरा सत्य है ! सादर !
आदरणीय अरुन भाई जी, आपकी रचनाएं अवश्य ही मस्तिष्क को खुराक देती हैं। साहित्य तो दर्पण है समाज का और आपने यथार्थ का यथावत चित्रण जिन सुन्दर शब्दों में किया है, वह काबिले तारीफ है। इस रचना के लिए आप हार्दिक बधाई स्वीकारें, लिखते रहे और प्रेरित करते रहें। नमन।
एक रचनाकार भावों की तद्नुभूति तो करता है पर अपनी रचना से वो उतना ही अनासक्त होता है जितना कि एक सिद्ध योगी अपने कर्मों से, जितना कि शल्य क्रिया कर रहा चिकित्सक अपने मरीज से।
सत्य जो भी हो मेरा ऐसा मानना है कि, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आपमें नकारात्मक भाव स्थायी होते जाएंगे ऐसे यथार्थ चित्रणों से। अगर हर कोई प्रणय और प्रेम ही लिखेगा तो जीवन के एक बड़े दायरे और भाव समुच्च्य को उपेक्षित करने का दायित्व भी उन्हीं को जाता है। पुन: बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें, सच से रुबरु कराते रहें और मार्ग प्रशस्त करते रहें। पुन: आभार
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