( २१२२ २१२२ २१२ )
क्या हुआ कोशिश अगर ज़ाया गई
दोस्ती हमको निभानी आ गई |
बाँधकर रखता भला कैसे उसे
आज पिंजर तोड़कर चिड़िया गई |
चूड़ियों की खनखनाहट थी सुबह
शाम को लौटी तो घर तन्हा गई |
लहलहाते खेत थे कल तक यहाँ
आज माटी गाँव की पथरा गई |
कैस तुमको फ़ख्र हो माशूक पर
पत्थरों के बीच फिर लैला गई |
आज फिर आँखों में सूखा है 'सलिल'
जिंदगी फिर से तुम्हें झुठला गई |
-- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
वीनस भाई जी, हौसला-अफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया |
आदरणीय सौरभ सर, आपके ये शब्द मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगे |
बहुत-बहुत शुक्रिया ! :)))))
भाई आशीष सलिलजी, दिल से दुआ कर रहा हूँ आपका ये मेयार और अंदाज़ बना रहे. मतले से लेकर मक्ते तक ग़ज़ल बस वाह वाह है. किस एक शेर की बात करूँ ? ग़ज़ल में उस्तादों वाली बात है साहब.ऐसे ही कहें और खूब कहें
कमाल कमाल कमाल
बहुत बहुत शुक्रिया भाई जीत जी, भाई श्याम नारायण जी !!!
आदरणीय योगराज सर, आपने गलती के साथ समाधान भी बता दिया, इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया ! :) :)
मैं मतले को आपके दिए गये सुझाव के अनुसार बदल रहा हूँ, अब शेर अच्छा भी लग रहा है |
एक और तरह के दोष का आज पता चला, आगे से इसका ध्यान रखूँगा !
पुनः हार्दिक धन्यवाद | आदरणीय अभिनव अरुण जी का भी आभार !
आदरणीया सरिता जी, आदरणीया गीतिका जी,
भाई सौरभ श्रीवास्तव जी और भाई शिज्जू जी..... आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया !!!
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
लहलहाते खेत थे कल तक यहाँ
आज माटी गाँव की पथरा गयी |............वाह ! यह शेर बहुत सुंदर है
शानदार गजल पर , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय आशीष जी
भाई आशीष जी, आपके मतले के ऊला में एक भारी ऐब है (जिसकी तरफ आदरणीय अभिनव अरुण भाई ने इशारा भी किया है), ज़रा मतला देखें;
//क्या हुआ जो कोशिशें ज़ाया गयी//
"कोशिशें ज़ाया गयी" गलत है, "कोशिशें = बहुवचन" और "गयी = एकवचन", असूलन तो यहाँ "कोशिशें ज़ाया गईं" होना चाहिए था. लेकिन "गईं" लेने से पूरी रदीफ़ गलत हो जाएगी. मेरा सुझाव है कि इस मिसरे को यूं कर लिया जाए:
.
"क्या हुआ कोशिश अगर जाया गई"
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