For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( २१२२ २१२२ २१२ )

क्या हुआ कोशिश अगर ज़ाया गई
दोस्ती हमको निभानी आ गई |

बाँधकर रखता भला कैसे उसे
आज पिंजर तोड़कर चिड़िया गई |

चूड़ियों की खनखनाहट थी सुबह
शाम को लौटी तो घर तन्हा गई |

लहलहाते खेत थे कल तक यहाँ
आज माटी गाँव की पथरा गई |

कैस तुमको फ़ख्र हो माशूक पर
पत्थरों के बीच फिर लैला गई |

आज फिर आँखों में सूखा है 'सलिल'
जिंदगी फिर से तुम्हें झुठला गई |

-- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 658

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 13, 2013 at 7:05pm

वीनस भाई जी, हौसला-अफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया |

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 13, 2013 at 7:04pm

आदरणीय सौरभ सर, आपके ये शब्द मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगे |
बहुत-बहुत शुक्रिया !    :)))))

Comment by वीनस केसरी on August 12, 2013 at 12:42am
बहुत खूब आशीष जी ...

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है /... मतला और मक्ता बहुत कामयाब हुए हैं ...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 10:24pm

भाई आशीष सलिलजी,  दिल से दुआ कर रहा हूँ आपका ये मेयार और अंदाज़ बना रहे. मतले से लेकर मक्ते तक ग़ज़ल बस वाह वाह है. किस एक शेर की बात करूँ ? ग़ज़ल में उस्तादों वाली बात है साहब.ऐसे ही कहें और खूब कहें

कमाल कमाल कमाल

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 6, 2013 at 7:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया भाई जीत जी,  भाई श्याम नारायण जी  !!!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 6, 2013 at 7:33pm

आदरणीय योगराज सर,  आपने गलती के साथ समाधान भी बता दिया, इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया !  :) :)
मैं मतले को आपके दिए गये सुझाव के अनुसार बदल रहा हूँ, अब शेर अच्छा भी लग रहा है |
एक और तरह के दोष का आज पता चला, आगे से इसका ध्यान रखूँगा !

पुनः हार्दिक धन्यवाद |  आदरणीय अभिनव अरुण जी का भी आभार  !

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 6, 2013 at 7:27pm

आदरणीया सरिता जी, आदरणीया गीतिका जी,
भाई सौरभ श्रीवास्तव जी और भाई शिज्जू जी..... आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया !!! 

Comment by Shyam Narain Verma on August 6, 2013 at 5:08pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 6, 2013 at 5:06pm

लहलहाते खेत थे कल तक यहाँ 
आज माटी गाँव की पथरा गयी |............वाह ! यह शेर बहुत सुंदर है 

शानदार  गजल  पर , तहे दिल  से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय आशीष जी 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2013 at 4:32pm

भाई आशीष जी, आपके मतले के ऊला में एक भारी ऐब है (जिसकी तरफ आदरणीय अभिनव अरुण भाई ने इशारा भी किया है), ज़रा मतला देखें;

//क्या हुआ जो कोशिशें ज़ाया गयी//

"कोशिशें ज़ाया गयी" गलत है, "कोशिशें = बहुवचन" और "गयी = एकवचन", असूलन तो यहाँ "कोशिशें ज़ाया गईं" होना चाहिए था. लेकिन "गईं" लेने से पूरी रदीफ़ गलत हो जाएगी. मेरा सुझाव है कि इस मिसरे को यूं कर लिया जाए:

.

"क्या हुआ कोशिश अगर जाया गई"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service